पहले आनंदीबेन और अब विजय रुपाणी, जानिए क्यों गुजरात में बार-बार मुख्यमंत्री बदल रही बीजेपी
नई दिल्ली. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी के इस्तीफे से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है. पिछले पांच सालों में ये दूसरा मौका है जब राज्य में कार्यकाल पूरा करने से पहले ही सीएम की कुर्सी गई हो. सबसे पहले अगस्त 2016 में आंनदीबेन पटेल को हटाया गया और अब रुपानी ने भी मैदान छोड़ दिया है. सवाल उठता है कि आखिर बार-बार बीजेपी को कमान क्यों बदलनी पड़ रही है? रुपानी को हटाने का फैसला क्या सिर्फ अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए लिया गया है? या फिर गुजरात बीजेपी में अंदरखाने कोई और खिचड़ी पक रही है. आखिर क्या है इस परिवर्तन की इनसाइड स्टोरी?
अगस्त 2016 में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले आनंदीबेन की जगह बीजेपी ने विजय रुपाणी को राज्य की कमान सौंपी थी. उस उक्त कहा गया था कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का ये एक बेहद चालाक राजनीतिक कदम है. साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी दिल्ली आ गए. और राज्य की कमान आंनदीबेन को सौंप दी. लेकिन कुछ दिनों के बाद ही आनंदीबेन पाटीदार आंदोलन में फंस गई. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लिहाजा दिसंबर 2015 के स्थानीय निकायों के चुनाव में कई जगहों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2016 में ऊना में दलितों की सार्वजनिक पिटाई हुई, जो यूपी चुनावों से पहले बड़ा मुद्दा बन गया.
पाटीदारों को शांत करने के लिए आनंदीबेन की सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा की. ये ऐलान विजय रुपाणी की तरफ से किया गया. इस फैसले को आनंदीबेन के लिए एक अपमान के तौर पर देखा गया. रुपानी उनकी सरकार में मंत्री और राज्य इकाई के प्रमुख थे. अब दिसंबर 2022 में चुनाव से एक साल पहले बीजेपी ने रुपानी का पत्ता साफ कर दिया है.
पिछले साल कोरोना महामारी के प्रबंधन में रुपाणी की विफलता के लिए उनकी जम कर आलोचना हुई. गुजरात हाई कोर्ट ने भी उनके कामकाज़ पर सख्त टिप्पणी की थी. इसके अलावा रुपाणी के कई आलोचकों ने ये भी आरोप लगाया कि उनकी कमजोर नेतृत्व के चलते राज्य में आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ने का मौका मिला. 2016 में, भाजपा का एक वर्ग चाहता था कि नितिन पटेल आनंदीबेन की जगह लें. लेकिन कहा जाता है कि अमित शाह ने अपने करीबी माने जाने वाले रुपाणी को मौका दिया.
बदलाव की लहर
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस बार हालात ने मामले को बदल दिया है. रुपाणी का इस्तीफा राज्य कार्यकारिणी की बैठक के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें शाह की अनुपस्थिति में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भाग लिया था. अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि शाह, जो भाजपा के संगठन और कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. गुजरात भाजपा में बीएल संतोष (संगठन महासचिव) के साथ जिम्मेदारियों को साझा करेंगे; मनसुख मंडाविया (मोदी द्वारा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के लिए चुना गया); जे पी नड्डा (भाजपा अध्यक्ष); सी आर पाटिल (फिर से, मोदी द्वारा गुजरात इकाई के प्रमुख के रूप में चुना गया); और नए मुख्यमंत्री.
क्या गुजराज में समय से पहले होगा चुनाव?
कहा जा रहा है कि बीजेपी गुजरात में जल्दी चुनाव कराने के पक्ष में है. अगले साल की शुरुआत में यूपी समेत पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और इसी दौरान गुजरात में भी चुनाव हो सकते हैं. सूत्रों ने कहा कि इससे पार्टी गैर-विधायक को सीएम के रूप में चुनने में सक्षम होगी और कानूनी राय मांगी जा रही है. हालांकि एक ही समय में यूपी और गुजरात दोनों राज्यों से चुनाव लड़ना पार्टी के लिए एक चुनौती होगी. गुजरात में सत्ता परिवर्तन भाजपा के मुख्यमंत्रियों के फेरबदल के नए पैटर्न पर फिट बैठता है. वास्तव में, 2014 और 2019 के बीच, आनंदीबेन का बाहर निकलना नियम का अपवाद था. झारखंड, राजस्थान या हरियाणा जैसी राज्य इकाइयों में बदलाव की मांग के बावजूद पार्टी सीएम को बदलने के लिए तैयार नहीं हुई.
राज्य में पहले से हो रहे हैं बदलाव
गुजरात में बदलाव के कुछ शुरुआती संकेत पहले ही मिल गए थे. पाटिल को महत्वपूर्ण स्थानीय निकाय चुनावों से पहले पिछले साल जुलाई में राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में लाया गया था. पाटिल को शाह और मोदी के करीबी माना जाता है. इसके बाद, संगठन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जिसमें भीखुभाई दलसानिया की जगह रत्नाकर की नियुक्ति शामिल थी – जिन्होंने शाह के साथ काम किया था – संगठन महासचिव के रूप में. दलसानिया को बिहार इकाई का महासचिव (संगठन) नियुक्त किया गया था.
मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा चुनाव
इंडियन एक्सप्रेस को पार्टी के एक सांसद ने कहा, ‘हालांकि चुनाव वैसे भी मोदी के चेहरे से लड़ा जाएगा, लेकिन पार्टी को ये संदेश देने की जरूरत है कि राज्य में उसके पास एक मजबूत और प्रभावी नेतृत्व है.’ रुपाणी मुख्यमंत्री बनने वाले पहले जैन थे. जो राज्य में एक प्रभावशाली अल्पसंख्यक थे. लेकिन उनके नेतृत्व में बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन करते हुए 182 में से सिर्फ 99 सीटों पर जीत हासिल की.