अपना काम बनता, क्यों करें जनता की चिंता
50% भारतीय बिना फायदे के अनजानों की परवाह नहीं करते; सोशल माइंडफुलनेस में जापानी नंबर वन, जानिए बाकी देशों का हाल
भारतीय रेल के स्लीपर कोच में सफर करते वक्त कई बार खिड़की से पानी की बौछार होती है और आप भीग जाते हैं। खिड़की से झांकने पर पता चलता है कि बगल वाली सीट पर बैठे किसी व्यक्ति ने खिड़की के बाहर ही हाथ धो लिए हैं और उस गंदे पानी से अब आपका फेसवॉश हो चुका है।
ऐसा नहीं है कि भारतीय रेल में हाथ धोने की कोई सुविधा नहीं है, बस बात यह है कि कौन उठकर जाए बेसिन में हाथ धोने, यहीं धो लेते हैं, खिड़की के बाहर।
सड़क चलते कार का शीशा उतार कर केले का छिलका फेंकना हो या फिर बिस्किट-चॉकलेट के रैपर, भारतीय इस काम में देरी नहीं करते।
कई बार तो दूसरे-तीसरे माले पर रहने वाली आंटी रोज सुबह सूर्य देवता को जल चढ़ाना तो नहीं भूलतीं, बस ये भूल जाती हैं कि उस वक्त ग्राउंड फ्लोर से कोई व्यक्ति तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल रहा होगा या फिर कोई बच्चा स्कूल जा रहा होगा। आंटी जी ने जल चढ़ाकर अपना काम पूरा कर लिया, अब वो जल आपके ऊपर गिरा और आप एक बार फिर से नहा लिए इसकी परवाह किसे है? हम भारतीय इन सब मामलों में बड़े बेपरवाह होते हैं।
ऊपर लिखे उदाहरण से आपको ये तो समझ आ ही गया होगा कि आखिर हम बात किस बारे में कर रहे, फिर भी थोड़ा जान लेते हैं कि सोशल व्यवहार का मतलब क्या है।
जब तक कोई व्यक्तिगत लाभ शामिल न हो तब तक हम अनजान लोगों की चिंता करने की संभावना काफी कम रखते हैं, इसे दूसरे शब्दोंं में सोशल माइंडफुलनेस भी कहते हैं।
31 देश के लोगों पर हुई स्टडी
बेपरवाह होने के मामले में स्कोरिंग देखी जाए, तो भारतीयों की स्कोरिंग केवल 50% है। ये बातें हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि 31 देशों में सोशल व्यवहार को लेकर हुई एक अमेरिकी संस्था की स्टडी में यह बात पता चली है।
प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में पिछले हफ्ते पब्लिश हुई रिसर्च के अनुसार सोशल माइंडफुलनेस के मामले में जापान की स्कोरिंग 72% है। यानी वो बिना किसी फायदे के भी 72% मुद्दों पर अनजान के बारे में सोचते हैं।
दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रियाई लोग थे जिन्होने 69% मामलों पर सोशल माइंडफुलनेस दिखाई। तीसरे नंबर पर मेक्सिकन रहे जिनकी स्कोरिंग 68% थी। इस लिस्ट में नीचे के देशों को देखें तो इंडोनेशिया 46% के साथ सबसे नीचे के पायदान पर है, इसके बाद तुर्की 47% के साथ है और भारत नीचे से तीसरे स्थान पर 50% स्कोरिंग के साथ कायम है।
65 रिसर्चर्स ने की स्टडी
65 रिसर्चर्स की एक इंटरनेशनल टीम ने एक प्रोजेक्ट के लिए कंट्री लेवल पर सोशल व्यवहार को लेकर एक स्टडी की है। रिसर्चर्स ने स्टडी में शामिल 8,354 वॉलंटियर्स के लिए 12 हाइपोथेटिकल चॉइस (काल्पनिक विकल्प) तैयार किए। रिजल्ट में अलग-अलग देश के लोगों के बीच कई बड़े अंतर दिखाई दिए।
इस आदत को बदलने के लिए ज्यादा एफर्ट की जरूरत नहीं
नीदरलैंड की लीडेन यूनिवर्सिटी में सोशल साइकोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर नील्स वैन डूसम ने एक इंटरव्यू में कहा है कि रोजमर्रा की जिंदगी में कई ऐसे मामले होते हैं जब आप दूसरों की मदद कर सकते हैं और इसके लिए ज्यादा कोशिश या एफर्ट की जरूरत नहीं होती है।
फिर भी, मानव सहयोग पर हुई ज्यादातर रिसर्च समय या पैसे खर्च करने जैसे व्यवहार पर ही हुई हैं। जबकि सामाजिक रूप से जागरूक व्यवहारों के बारे में लोग कम ही जानते हैं, जबकि इसमें कोई ज्यादा एफर्ट नहीं लगते। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि रोजमर्रा की चीजें करते हुए आप इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप जो कर रहे हैं उससे कोई दूसरा व्यक्ति प्रभावित तो नहीं होगा। जैसे कि कुछ खाने के बाद खाली पैकेट या छिलका डस्टबिन में ही डालें, ताकि कोई दूसरा प्रभावित न हो।