अमेरिका में हर 55 सेकंड में 1 मौत
दुनिया के सबसे संक्रमित देश अमेरिका में कोरोना मरीजों की संख्या 4 करोड़ के पार; एक दिन में 1500 से ज्यादा मौतें
अमेरिका कोरोना के डेल्टा वैरिएंट की चपेट में है। वह अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। देश में पिछले 8 महीनों के सबसे ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। आलम यह है कि हर 55 सेकंड में एक मौत और हर एक मिनट में 111 लोग संक्रमित हो रहे हैं। यानी, अमेरिका में हर एक सेकंड में 2 केस सामने आ रहे हैं। अमेरिका में कोरोना के मामले 4 करोड़ पार कर गए हैं। 6.62 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। देशभर के अस्पताल भर चुके हैं। ऑक्सीजन की कमी होने की आशंका जताई जाने लगी है।
केवल अगस्त में ही अमेरिका में कोरोना के 42 लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए गए हैं और मृतकों की संख्या जुलाई की तुलना में तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 26,805 हो गई है। रिपब्लिकन राज्यों में मौतों की संख्या पिछले साल से बढ़ गई है।
हवाई, वेरमोंट, टेक्सास, कंसास, वर्जिन आइलैंड, अलास्का, ऊटाह, नेवादा, ओरेगन, जॉर्जिया और नॉर्थ कैरोलिना में 2020 की तुलना में अगस्त 2021 में अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। एरिजोना, ओक्लाहामा, वेस्ट वर्जीनिया, केंटकी, वर्जीनिया, कैलिफोर्निया और अलबामा में यह आंकड़ा पहले ही पार हो चुका है।
कई जिलों के स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसके पीछे सीधे तौर पर रिपब्लिकन गवर्नरों को जिम्मेदार ठहराया है। अधिकारियों के मुताबिक, इन राज्यों के गवर्नरों ने वायरस के खिलाफ निवारक उपाय अपनाने से इनकार कर दिया और डेल्टा वैरिएंट फैलने दिया। रिपब्लिकन पार्टी के शासन वाले अरकंसास, फ्लोरिडा, लुइसियाना, मिसिसिपी और ओरेगोन डेल्टा वैरिएंट के एपिसेंटर बने हुए हैं। देश के कुल कोविड-19 हॉस्पिटलाइजेशन का पांचवां हिस्सा केवल फ्लोरिडा में ही है। वहीं, CDC ने अपील की है कि जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है, वे यात्रा न करें।
वैक्सीन: 6 माह में डेढ़ करोड़ डोज बर्बाद, 20 देशों में लग सकते थे
अमेरिका में मार्च से अब तक वैक्सीन के डेढ़ करोड़ से ज्यादा डोज बर्बाद हो गए। इतने डोज से दुनिया के 20 से ज्यादा छोटे देशों की पूरी आबादी को वैक्सीनेट किया जा सकता था। यह जानकारी अमेरिकी फार्मेसी कंपनियों और राज्य सरकारों द्वारा जारी आंकड़ों से सामने आई है।
भारत में फैला संक्रमण इस बात का प्रमाण था कि कोरोना दुनिया में नए अवतार में फिर पैर पसारेगा
इस साल जिस तरह भारत में संक्रमण फैला था, वो प्रमाण था कि दुनिया में कोरोना नए अवतार में फिर पैर पसारेगा। आज अमेरिका में आ रहे 99% मामले डेल्टा वैरिएंट के मिल रहे हैं। यह कहना है- डॉ. सायरा मडाड का। डॉ. मडाड न्यूयॉर्क सिटी हेल्थ अस्पताल शृंखला की वरिष्ठ निदेशक हैं। डॉ. मडाड अमेरिका के कोविड रिस्पॉन्स टास्क फोर्स की सदस्य भी हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर के रितेश शुक्ल के वैक्सीन से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए। मुख्य अंश…
कोरोना को किसी फ्लू जैसा क्यों नहीं माना जाए?
दुनिया में आधी से ज्यादा आबादी को वैक्सीन लगनी बाकी है। इसलिए नहीं कह सकते कि आने वाले महीनों में वायरस क्या रूप लेगा। मौसमी फ्लू का वायरस कोरोना जितना डायनामिक नहीं होता। वो कम समय तक ही संक्रामक रह सकता है। फ्लू से कोरोना की तुलना करना भूल होगी।
वैक्सीन लगवा चुके लोग संक्रमित हो रहे हैं, क्या वैक्सीन बेअसर मानी जाए?
जिन देशों में वैक्सीन लगने की दर तेज है, वहां संक्रमण फैल रहा है, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने के मामलों या मौतों में भारी कमी आई है। ये कमी वैक्सीन के असरदार होने का सबूत है। बिना वैक्सीन के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने में लंबा वक्त लगता है। इस दौरान मौतों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ती है।
वैक्सीन किन पैमानों पर असरदार मानी जाए?
मौजूदा वैक्सीन को लेकर कभी ये दावा नहीं किया गया कि वो संक्रमण रोकेंगी। शुरुआत में वैक्सीन से संक्रमण थमा भी। पर वो बोनस ही था, क्योंकि इसकी उम्मीद नहीं थी। इजरायल, ब्रिटेन जैसे देशों में साबित हो रहा है कि वैक्सीन लगने पर भी संक्रमण हो सकता है, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत कम पड़ रही है और मौतें बेहद कम हो रही हैं। खासकर डेल्टा वैरिएंट के मामले में देखा जा रहा है कि वैक्सीन मौतें रोक रही है। वैक्सीन कार की सीट बेल्ट जैसी है। वो एक्सीडेंट तो नहीं रोकती, पर उससे लगने वाले चोट रोकती है। कोरोना जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या है। दुनिया में कहीं भी ढिलाई बरती गई तो वायरस नए रूप लेकर संक्रमण फैलाता रहेगा।
बच्चे वैक्सीन से दूर हैं। मौजूदा वैक्सीन उन्हें लग सकती हैं?
अमेरिका में भी जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई, उनमें वायरस तेजी से फैल रहा है। हर हफ्ते दो लाख बच्चे कोरोना से प्रभावित हैं। मैं खुद तीन बच्चों की मां हूं। मेरे बच्चे 8 साल से कम उम्र के हैं। मौजूदा वैक्सीन उन्हें नहीं लगा सकती, क्योंकि उनकी टेस्टिंग बच्चों पर नहीं हुई। कितनी मात्रा में डोज दिया जाए? उनका असर कितना होगा? इन पर शोध चल रहा है, जब तक आधिकारिक तौर पर बच्चों की वैक्सीन नहीं आ जाती, उन्हें मौजूदा वैक्सीन देने का जोखिम नहीं ले सकती।