ISI के इशारे पर भारतीयों की जान लेने वाला हक्कानी नेटवर्क बोला
कश्मीर में नहीं देंगे दखल, जानें इस आतंकी संगठन के बारे में सब कुछ
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का गठन होने वाला है। एक-दो दिन में नई सरकार का ऐलान हो सकता है। इससे पहले तालिबान ने भारत से बेहतर रिश्ते बनाने की बात कही है। तालिबान नेता ने इसे लेकर दोहा में भारत के राजदूत से मुलाकात की है। वहीं, दूसरी ओर तालिबान के साथ सत्ता में शामिल होने जा रहे आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क ने भी भारत से रिश्ते की बात की है।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के इशारों पर काम करने वाले हक्कानी नेटवर्क ने कहा है कि वो कश्मीर मुद्दे पर कोई दखल नहीं देगा। ये वही आतंकी संगठन है जिसने कभी काबुल में भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला किया था।
हक्कानी नेटवर्क ने भारत को लेकर अब क्या कहा है? उसके बयान पर कितना यकीन किया जा सकता है? हक्कानी नेटवर्क क्या है और तालिबान से कितना अलग है? तालिबान के अंदर इसकी क्या भूमिका है? आने वाली सरकार में भी क्या हक्कानी नेटवर्क का कोई रोल होगा? आइए जानते हैं…
हक्कानी नेटवर्क ने भारत को लेकर क्या कहा है?
हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई अनस हक्कानी ने CNN को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि हम भारत से अच्छे संबंध चाहते हैं। भारत ने पिछले बीस साल के दौरान हमारे दुश्मनों की बहुत मदद की, लेकिन हम सब कुछ भूलकर रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। कश्मीर के मुद्दे पर अनस ने कहा कि कश्मीर में किसी भी तरह का दखल हमारी पॉलिसी के खिलाफ है। हम इस मुद्दे पर कोई दखल नहीं देंगे।
क्यों अहम है हक्कानी नेटवर्क का भारत पर दिया बयान?
ये आतंकी संगठन पाकिस्तान के इशारे पर काम करने के लिए जाना जाता है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद एक्सपर्ट्स को अंदेशा है कि भारत-अफगानिस्तान रिश्तों में एक बड़ी बाधा हक्कानी नेटवर्क भी है।
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जुलाई 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हमला इस आतंकी संगठन ने किया था। इस आत्मघाती हमले में 58 लोग मारे गए थे। कहा जाता है कि इस धमाके को अंजाम देने के आदेश ISI ने हक्कानी नेटवर्क को दिए थे।
मार्च 2020 में काबुल के गुरुद्वारा राय साहेब पर हुए आतंकी हमले में 25 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी। इस हमले की जिम्मेदारी ISIS-K ने ली थी, लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा था कि इस हमले में हक्कानी नेटवर्क का ही हाथ था।
क्या हक्कानी नेटवर्क की बातों पर यकीन किया जा सकता है?
चाहे हक्कानी नेटवर्क हो या तालिबान, दोनों की बातों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं किया जा सकता। तालिबान की सरकार ने गुरुवार को ही कहा कि वो फंड्स के लिए चीन पर निर्भर है, क्योंकि चीन ही उसके लिए सबसे भरोसेमंद सहयोगी है।
वहीं दूसरी ओर हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के सहयोगी रहे अल-कायदा ने तालिबान की जीत के बाद तालिबान से इस्लाम के दुश्मनों से कश्मीर और दूसरी कथित इस्लामी ‘जमीनों’ की ‘आजादी’ का आह्वान किया। भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने की बात करने वाले तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने गुरुवार शाम एक इंटरव्यू में कहा है कि तालिबान को कश्मीर समेत पूरी दुनिया के मुसलमानों की आवाज उठाने का हक है।
वहीं, पाकिस्तान लगातार तालिबान के पक्ष में दुनियाभर में लॉबिंग कर रहा है। तालिबान की सत्ता में चीन, पाकिस्तान जैसे देशों का दखल साफ दिख रहा है। ऐसे में इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान जैसे देश तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का भविष्य में भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं।
हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच क्या रिश्ते हैं?
हक्कानी नेटवर्क का गठन पूर्व मुजाहिद्दीन कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी ने किया था। 1980 के दशक में जलालुद्दीन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की ट्रेनिंग और फंडिंग से इसे शुरू किया था। CIA ने उस वक्त अफगानिस्तान पर काबिज सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने के लिए इस तरह कई लड़ाकों की मदद की। उस दौर में जलालुद्दीन एंटी-सोवियत जिहाद के हीरोज में शामिल था। अफगानिस्तान में सोवियत सरकार के पतन तक जलालुद्दीन ने ओसामा बिन लादेन सहित कई विदेशी जिहादियों के साथ अच्छे रिश्ते बना लिए थे।
1990 के दशक में जब तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ तो जलालुद्दीन ने उससे हाथ मिला लिए। 1990 की तालिबान सरकार के दौर में जलालुद्दीन हक्कानी एक अफगान प्रॉविंस सरकार का बॉर्डर एंड ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्टर भी रहा।
2000 की शुरुआत में हक्कानी का तालिबान के भीतर प्रभाव बढ़ा और उसे मिलिट्री कमांडर बना दिया गया। 9/11 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर अटैक के बाद जब अफगानिस्तान में अमेरिका का दखल बढ़ा तो हक्कानी नाटो सेनाओं के खिलाफ युद्ध में लड़ा। कहा जाता है कि उस दौर में ओसामा बिन लादेन को अफगानिस्तान से बाहर निकालने में भी हक्कानी का ही हाथ था। 2010 के दशक की शुरुआत में हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों पर एक के बाद एक कई आत्मघाती हमले किए। इसके चलते 2012 में अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क को आतंकी संगठन घोषित कर दिया। अपने आत्मघाती हमलों के साथ ही हक्कानी नेटवर्क कई किडनैपिंग में भी शामिल रहा है।
2018 में जलालुद्दीन हक्कानी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। इसके बाद जलालुद्दीन का बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी नेटवर्क का नया प्रमुख बना। 1996 से तालिबान का हिस्सा होते हुए भी हक्कानी नेटवर्क अपनी क्रूरता और लड़ाकों की वजह से अलग पहचान रखता है। आर्थिक रूप से भी हक्कानी नेटवर्क काफी मजबूत है।
तालिबान के अंदर हक्कानी नेटवर्क की कितनी बड़ी भूमिका है?
पूर्वी अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क का प्रभाव सबसे ज्यादा है। अफगानिस्तान में प्रभावी इस संगठन का बेस पाकिस्तान की उत्तर-पश्चिम सीमा में है। पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान में तो इसकी समानांतर सरकार चलती है। पिछले कुछ सालों में इस संगठन की गतिविधियां काफी बढ़ी हैं। तालिबान लीडरशिप में भी हक्कानी नेटवर्क की उपस्थिति बढ़ी है। 2015 में नेटवर्क के मौजूदा प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान का डिप्टी लीडर बनाया गया था।
सिराजुद्दीन का छोटा भाई अनस एक समय अफगानिस्तान की जेल में बंद था। उस वक्त की अफगान सरकार में उसे मौत की सजा हुई थी। उसने अफगान सरकार के पतन के बाद पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पूर्व चीफ एग्जीक्यूटिव अब्दुल्ला-अब्दुल्ला के साथ बातचीत की थी।
आने वाली सरकार में भी क्या हक्कानी नेटवर्क का कोई रोल होगा?
हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में हुए कुछ सबसे घातक हमलों में हक्कानी नेटवर्क का हाथ बताया जाता है। इन हमलों में कई आम लोगों, सरकारी अधिकारियों और विदेशी सैनिकों की जान गई। इसके बाद भी नई तालिबान सरकार में इनकी बड़ी और पावरफुल भूमिका होगी। हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी ISI का सपोर्ट है। कहा जा रहा है कि ISI तालिबान सरकार में सिराजुद्दीन हक्कानी को अहम रोल दिलाने के लिए लॉबिंग भी कर रही है।
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि सिराजुद्दीन हक्कानी छह साल से तालिबान का डिप्टी लीडर है। इससे ही उसकी आने वाली सरकार में भूमिका समझी जा सकती है। 2019 में सिराजुद्दीन के भाई अनस हक्कानी को अफगान सरकार की कैद से आजाद किया गया था। इस कदम को तालिबान और अमेरिका के बीच सीधी बातचीत का अहम फैसला माना जाता है, जिससे बाद में अमेरिका ने अपने सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी का ऐलान किया।
सिराजुद्दीन और अनस के साथ ही उनका चाचा खलील हक्कानी भी इस वक्त काबुल की गतिविधियों के केंद्र में है। खास बात ये है कि सिराजुद्दीन और खलील अभी अमेरिका की मोस्टवांटेड लिस्ट में शामिल हैं।
कितना खतरनाक संगठन है हक्कानी नेटवर्क?
पिछले दो दशक में हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में कई बेहद घातक हमले किए। 2012 में अमेरिका ने इसे आतंकी संगठन घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र ने भी इस संगठन पर प्रतिबंध लगा रखा है। हक्कानी नेटवर्क आतंकी हमलों में सुसाइड बॉम्बर का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है।
2013 में अफगान सेना ने हक्कानी नेटवर्क के एक ट्रक को पकड़ा था। इस ट्रक में करीब 28 टन विस्फोटक भरा हुआ था। 2008 में उस वक्त के अफगानी राष्ट्रपति हामिद करजई पर हुए आत्मघाती हमले का आरोप भी हक्कानी नेटवर्क पर लगा था। अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत करने का आरोप भी हक्कानी नेटवर्क पर ही है।