कल्याण सिंह के अंतिम संस्कार में ना जाकरअखिलेश ने बनाई गलत परिपाटी

नई दिल्ली. एक पुरानी कहावत है कि किसी के यहां खुशी के मौके पर भले ही न जाएं लेकिन दुख और शोक के मौके पर जरूर जाना चाहिए. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ना तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के अंतिम संस्कार में शामिल हुए और ना ही लखनऊ में आयोजित उनकी शोकसभा में पहुंचे. जाहिर है कि सपा सुप्रीमो (SP Supremo) ने एक खराब परिपाटी की शुरुआत की है.

और बीजेपी आगामी चुनाव में इसे समाजवादी पार्टी के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगी, क्योंकि कल्याण सिंह एक बड़े ओबीसी नेता थे और अखिलेश यादव को कड़े सवालों का सामना करना पड़ेगा कि आखिर उन्होंने दिवंगत मुख्यमंत्री को अंतिम विदाई देना भी उचित क्यों नहीं समझा. बीजेपी के राज्य अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को शोकसभा के लिए न्यौता देने उनके आवास पर भी गए. मुलायम सिंह ने कहा कि वे अपनी खराब तबीयत के चलते नहीं आ सकते, लेकिन अखिलेश यादव ने अपने पिता की जगह भी शोकसभा में आना उचित नहीं समझा.

समाजवादी पार्टी के नेताओं ने दलील दी कि अखिलेश यादव ने एक शोक संदेश जारी किया था और शायद कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह से फोन पर बात भी की थी, और जिस दिन कल्याण सिंह का पार्थिव शरीर लखनऊ में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था, उस दिन सपा सुप्रीमो सैफई में थे. सपा नेताओं ने बीजेपी पर कल्याण सिंह की मौत के मामले में राजनीति करने का आरोप लगाया है और जोर देकर बता रहे हैं कि किस तरह बीजेपी ने कल्याण सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया था और उनके बेटे को कैबिनेट मंत्री भी नहीं बनाया, जिसकी इच्छा कल्याण सिंह को काफी लंबे समय से थी. सपा नेता ने कहा है कि ये मुलायम सिंह यादव ही थे, जिन्होंने बीजेपी से बाहर किए जाने के बाद कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में लिया और एक लोकसभा सीट भी जीतने में मदद की.

हालांकि इस बारे में कोई सफाई नहीं दी जा सकती कि कैसे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कल्याण सिंह की मौत के बाद तीन कार्यक्रमों में से एक में भी शामिल होने का समय नहीं मिला. बीजेपी नेताओं का कहना है कि ओबीसी की लोध जाति में इसे लेकर आक्रोश है, और जिस तरह का व्यवहार अखिलेश यादव ने दिखाया है, उससे कल्याण सिंह की बिरादरी नाखुश है.

इसके अलावा सपा नेता के व्यवहार ने बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटरों को एकजुट होने का भी मौका दे दिया है, लोग पूछ रहे हैं कि यदि अखिलेश यादव अपने मुस्लिम वोटों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री की मौत के बाद ऐसा कर सकते हैं, तो कल्याण सिंह तो राम मंदिर आंदोलन के हीरो थे और बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय सूबे के मुख्यमंत्री थे.

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