आखिर क्यों जातीय जनगणना से कतरा रही है बीजेपी ?

 

11 पार्टियों के साथ-साथ सत्ताधारी बीजेपी के अंदर भी जातीय जनगणना की मांग उठ रही है। लेकिन पार्टी नेतृत्व कतरा रहा है। पार्टी नेतृत्व जानता है कि जातीय आंकड़े जारी होने बाद ओबीसी की गिनती देश में तीन दशक पूर्व के ‘मंडल की आंधी’ जैसे मौहाल बना देगी जिसकी सबसे बड़ी चोट उसके हिन्दुत्व के एजेण्डे पर होगी। जातीय जनगणना के बाद देश में समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं।
7 अगस्त 1990 को संसद में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने की घोषणा के साथ देश में क्षेत्रीय दलों का ज्वार सा उठा जो लम्बे समय बाद 2014 के आम चुनावों के बाद कमजोर हुआ। और ओबीसी समुदाय में भाजपा की पकड़ मजबूत हुई। देश के सबसे बड़े जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय में गहरी पैठ रखने वाले क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी की 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार हुई।
बीपी मंडल की अध्यक्षता में बने मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों और केंद्रीय शिक्षा संस्थानों के दाखिलों में पिछड़े वर्गों को 27 परसेंट रिज़र्वेशन मिलने का रास्ता साफ हो पाया। जिसके बाद मंडल को पिछड़ा वर्ग के ऑइकॉन के रूप में याद किया जाता है। और 7 अगस्त को मंडल दिवस मनाया जाता है।
मुलायम सिंह लालू यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार जैसे क्षेत्रिय दलों का उभार इसी कवायद के चलते सम्भव हो पाया।
जैसे देश की सत्ता में काबिज होने का रास्ता यूपी (लोकसभा की 80 सीटें) से होकर जाता है, ठीक उसी तरह यूपी की सत्ता (विधानसभा की 403 सीटें) में काबिज होने का रास्ता ओबीसी वोट बैंक पर निर्भर करता है। इस वोट बैंक के सपोर्ट के बिना कोई भी दल यूपी की सत्ता में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना सकता है।
मंडल कमीशन की रिपोर्ट को आधार मानें तो देश में ओबीसी आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, वहीं उत्तर प्रदेश में 40 से 50 फीसदी के बीच है।
2001 के ‘सामाजिक न्याय रिपोर्ट’ के मुताबिक उत्तर प्रदेश की आबादी में पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी करीब 54 फीसदी है। उत्तर प्रदेश पिछड़ा आयोग के डेटा को मानें तो यूपी में अब तक कुल 79 जातियां ओबीसी में शामिल हैं।
यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियों की कुल आबादी 31% के करीब है।
सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियों में कुर्मी 7.5%, लोध 4.9%, गड़रिया/पाल 4.4%, निषाद/मल्लाह 4.3%, तेली/शाहु 4%, जाट 3.6%, कुम्हार/प्रजापति 3.4%, कहार/कश्यप 3.3%, कुशवाहा/शाक्य 3.2%, नाई 3%, राजभर 2.4%, गुर्जर 2.12% हैं।
इसलिए भाजपा आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती है।

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