सरकारी ई-करेंसी CBDC:
क्रिप्टोकरेंसी से किस तरह अलग होगी, क्यों महसूस की जा रही है इसकी जरूरत, जानिए सरकारी ई-करेंसी से जुड़े सवालों के जवाब
दूसरे सेंट्रल बैंकों की तरह ही भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी अपनी ई-करेंसी यानी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) की लॉन्चिंग पर काम कर रहा है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक मीडिया आउटलेट को हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा था कि इसका ट्रायल दिसंबर तक शुरू किया जा सकता है।
रिजर्व बैंक रुपए पैसों के लेन-देन को सुविधाजनक बनाने और कागज के करेंसी नोट पर निर्भरता घटाने के लिए अपनी इलेक्ट्रॉनिक करेंसी लाना चाहता है। उसके मुताबिक, CBDC से पेमेंट सिस्टम को ज्यादा किफायती और ज्यादा रियल टाइम वाला बनाया जा सकता है।
कितना बदला RBI का रुख?
रिजर्व बैंक को प्राइवेट वर्चुअल करेंसी इतने नापसंद हैं कि उसने 2018 में बैंकों और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को क्रिप्टोकरेंसी में डील करने वालों को सर्विस देने से रोक दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उस सर्कुलर को खारिज कर दिया है।
देश-दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती पॉपुलैरिटी को देखते हुए दिसंबर में CBDC के ट्रायल को लेकर आया गवर्नर शक्तिकांत दास का बयान अहम है। वैसे भी RBI के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने पिछले महीने ही कहा था कि CBDC का समय आ गया है।
क्या होती है CBDC?
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी CBDC एक तरह की वर्चुअल करेंसी होगी। इसको भारतीय रिजर्व बैंक जैसे सेंट्रल बैंक जारी करेंगे। यह करेंसी मूल रूप से कागज के करेंसी नोट का डिजिटल वर्जन होगी।
CBDC का आइडिया नया नहीं है। शंकर ने जुलाई में कहा था कि यह कॉन्सेप्ट सबसे पहले अमेरिकी इकोनॉमिस्ट और नोबल पुरस्कार विजेता जेम्स टोबिन ने दिया था। उन्होंने 80 के दशक में पेमेंट के डिजिटल फॉर्म की चर्चा की थी।
क्रिप्टोकरेंसी से अलग कैसे?
बिटकॉइन जैसी वर्चुअल करेंसी इनक्रिप्टेड होती हैं, डीसेंट्रलाइज्ड होती हैं और किसी सरकार के नियंत्रण में नहीं होती हैं। इसके उलट CBDC सरकार या उसकी एजेंसी की तरफ से जारी कागज वाली करेंसी का वर्चुअल फॉर्म होगी।
सबसे बड़ी बात यह है कि कागज वाली करेंसी की तरह CBDC की सप्लाई भी सेंट्रल बैंक के नियंत्रण में होगी। लीगल टेंडर मानी जाने वाली ई-करेंसी बैंक एकाउंट में रखी जा सकेगी जबकि क्रिप्टो करेंसी डिजिटल वॉलेट में रखी जाती है।
क्या है दुनिया की सोच?
दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों में CBDC को मोटे तौर पर तीन वजहों से अपनाए जाने की बात चल रही है। 1. कई देश पेपर करेंसी के घटते इस्तेमाल को देखते हुए, उसको ज्यादा स्वीकार्य इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में लाना चाहते हैं। 2. कुछ देशों में नकदी का लेन-देन ज्यादा होता है, वे लीगल टेंडर वाली करेंसी जारी करने के तौर-तरीकों को बेहतर बनाना चाहते हैं। 3. दुनियाभर के देशों की नजर लोगों की डिजिटल करेंसी की उस जरूरत पर है, जिसका पता प्राइवेट वर्चुअल करेंसी के बढ़ते से इस्तेमाल से चलता है।
क्या है रिवर्ज बैंक का तर्क?
पिछले कुछ वर्षों में बिटकॉइन जैसी प्राइवेट वर्चुअल प्राइवेट करेंसी की पॉपुलैरिटी काफी बढ़ी है। शंकर ने कहा था कि अगर प्राइवेट करेंसी की स्वीकार्यता बढ़ती रही तो वे लिमिटेड कनवर्टिबिलिटी (जिन करेंसी को दूसरे देशों की करेंसी से बदलने में मुश्किल आए) वाली नेशनल करेंसी के लिए खतरा बन जाएंगी।
RBI के मुताबिक CBDC में पब्लिक को वैसे उतार-चढ़ाव का सामना नहीं करना पड़ेगा, जैसा कि प्राइवेट वर्चुअल करेंसी में होता है। अप्रैल में पूर्व वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने क्रिप्टोकरेंसी की कीमत में बेहिसाब उथल-पुथल पर चिंता जताई थी।
इससे हमें क्या फायदा होगा?
RBI के मुताबिक, देश में करेंसी और GDP का अनुपात बहुत ज्यादा है, जिसको देखते हुए CBDC को अपनाना सही होगा। बड़े ट्रांजैक्शन में कैश की जगह CBDC यूज होने पर करेंसी की प्रिंटिंग, ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरिंग और डिस्ट्रीब्यूशन कॉस्ट कम हो जाएगी।
रिजर्व बैंक ई-करेंसी के इस्तेमाल के हिसाब से सिस्टम में इसकी उपलब्धता घटा-बढ़ा पाएगा। CBDC का यूज बढ़ने पर बैंक डिपॉजिट के लेन-देन में कमी आ सकती है। इसके अलावा नकदी पर लोगों की निर्भरता घट सकती है।