अफसरशाही का सत्ता से गठजोड़ चिंताजनक

अहम पदों पर बैठे कई आला अधिकारी सत्ता bureaucracy के हित साधने में यह भूल ही जाते हैं कि उनकी निष्ठा संविधान Constitution और जनता के प्रति है। देश-प्रदेश की समृद्धि और खुशहाली के बजाए उनका लक्ष्य खुद की समृद्धि और सत्तासीनों की खुशहाली बन जाता है।

पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों का सत्ताधारी दलों के साथ गठजोड़ एक ऐसा नासूर है जो लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर रहा है। अहम पदों पर बैठे कई आला अधिकारी सत्ता के हित साधने में यह भूल ही जाते हैं कि उनकी निष्ठा संविधान और जनता के प्रति है। देश-प्रदेश की समृद्धि और खुशहाली के बजाए उनका लक्ष्य खुद की समृद्धि और सत्तासीनों की खुशहाली बन जाता है। वे ऐसी योजनाएं बनाते हैं, जिससे सिर्फ सत्ता को फायदा हो। गड़बड़ी उजागर होने पर भी ये अधिकारी सत्तासीनों को बचा ले जाते हैं। कार्रवाई में भी तटस्थ नहीं रहते। और जब वरिष्ठ अधिकारी ही दागदार होते हैं तो उनके मातहतों का तो कहना ही क्या? वे जैसा देखते हैं, वैसा ही करने लगते हैं। बुराई के साथ बुराई की धारा में बह जाते हैं। नतीजा यह होता है कि पूरी व्यवस्था सड़ांध मार जाती है और आम आदमी को कहीं राहत नहीं मिलती। यही वजह है कि उच्चतम न्यायालय ने इस पर गंभीर चिंता जताई है।

छत्तीसगढ़ से जुड़े एक मामले में प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना ने कहा है, ‘यह परेशान करने वाला ट्रेंड है। पुलिस अधिकारी सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी का पक्ष लेते हैं और उनके विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई में जुट जाते हैं।’ न्यायालय ने यह भी पाया कि बाद में जब विरोधी सत्ता में आते हैं तो पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करते हैं। साफ है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बेहद घातक हालात मानता है। जैसा छत्तीसगढ़ के मामले में हुआ, वैसा अन्य राज्यों में भी हो ही रहा है। प्रश्न यह है कि व्यवस्था में घुस कर उसे चट करने वाली इस दीमक को कैसे खत्म किया जाए? इसमें अदालतों की भूमिका ही सबसे प्रभावी हो सकती है। अदालतें अपने निर्णयों से कड़ा संदेश देती रहें तो हो सकता है कि अधिकारियों की इस दुष्प्रवृत्ति को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके। साथ ही जनता को भी अपने बीच में से ऐसे समाज सेवी या व्हिसलब्लोअर आगे लाने होंगे जो पैनी निगाह रखें और हर गलती को रेखांकित करते चलें।

समाज की यह भी जिम्मेदारी है कि ऐसे सत्तासीनों को हतोत्साहित करे जो खुद के भले के लिए पूरी व्यवस्था को चौपट कर रहे हैं। बगैर किसी दबाव-प्रभाव के न्यायपूर्ण कार्य करने वाले अधिकारियों और कर्मियों को सम्मान देना भी जरूरी है। इससे वे प्रोत्साहित होंगे और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के प्रति कटिबद्ध रहेंगे। कई बार समाज सत्ता के साथ चलने वाले अधिकारियों को रोल मॉडल मानने लगता है, इससे भी बचना ही चाहिए।

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