इस्लामिक स्टेट ने तालिबान की छवि बिगाड़ने के लिए किया काबुल धमाका?
इस्लामिक स्टेट ने बीती 15 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी का क़ब्ज़ा होने के बाद किए अपने पहले हमले की ज़िम्मेदारी ली है.
इस्लामिक स्टेट ने कहा है कि उन्होंने गुरुवार शाम काबुल एयरपोर्ट पर एक आत्मघाती बम धमाके को अंजाम दिया था. इस ब्लास्ट में कुल 90 लोगों की मौत हुई थी जिसमें 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे.
इस्लामिक स्टेट ने कहा है कि उनका अभियान काबुल में अमेरिकी सेना और तालिबानी चरमपंथियों के सुरक्षा घेरे को खुली चनौती थी.
बीती 15 अगस्त को काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद से तालिबान ये दिखाने की कोशिश कर रहा है कि उसके राज में एक तरह की स्थिरता आ गयी है.
पुरानी दुश्मनी
जहां तक सुरक्षा में सेंध लगने की बात है तो तालिबान ने अमेरिका को एयरपोर्ट सुरक्षा का इंचार्ज बताते हुए, उसी पर चूक का दोष मढ़ा है.
लेकिन इस हमले से इस्लामिक स्टेट ने एक तीर से दो शिकार किए हैं.
इस हमले ने अमेरिका और तालिबान दोनों की छवि को नुकसान पहुंचाया है. ये अटैक बताता है कि हमले की चेतावनी होने के बावजूद अमेरिका और तालिबान सुरक्षा व्यवस्था संभालने में नाकामयाब रहे.
हालांकि, इस हमले के बाद इस्लामिक स्टेट को भी निंदा का सामना करना पड़ा रहा है क्योंकि कुछ जिहादी तत्वों ने इसे ‘मूर्खता भरा और मुसलमानों एवं इस्लाम के लिए नुकसानदायक’ हमला बताया है.
इस्लामिक स्टेट इन खोरासान के नाम से जाने जानी वाली इस्लामिक स्टेट की इस स्थानीय ब्रांच और तालिबान के बीच पुरानी दुश्मनी है. क्योंकि तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामिक स्टेट को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई है.
नंगरहार में मिली शिकस्त
तालिबान और अमेरिकी समर्थन वाली अफ़ग़ान सेना के हमलों की वजह से साल 2019 में इस्लामिक स्टेट को पूर्वी नंगरहार में अपने गढ़ से हाथ धोना पड़ा था.
इस वजह से इस्लामिक स्टेट तालिबान पर आरोप लगाता है कि वह इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ लड़ते हुए, अमेरिका के साथ मिल गया है.
ऐसा लगता है कि इस्लामिक स्टेट तालिबान की हालिया जीत से भी चिढ़ा हुआ है, क्योंकि इस्लामिक स्टेट अपनी कथित ख़िलाफ़त के सपने से दूर है पर तालिबान ने अपनी इस्लामी अमीरात बना रहा है. जिहादियों में तालिबान की इसके लिए तारीफ़ भी हो रही है.
ऐसे में इस्लामिक स्टेट अफ़ग़ानिस्तान में कानून-व्यवस्था और स्थिरता स्थापित करने के तालिबान के घोषित प्रयासों को कमजोर करने के लिए, हमेशा किसी मौके की तलाश में रहेगा.
इस्लामिक स्टेट के लिए काबुल एयरपोर्ट के नज़दीक भारी मात्रा में आम लोगों की भीड़, विदेशी और पश्चिमी देशों के सैनिकों की मौजूदगी, एक ऐसा अवसर था जिसका वह फ़ायदा उठाने की कोशिश में था. और फिर वही हुआ जिसके बारे में चेतावनी तक जारी की जा चुकी थी.
अफ़ग़ानिस्तान में जिहाद का ‘नया दौर’
इस्लामिक स्टेट ने अपने शुरुआती बयानों में तालिबान की निंदा करते हुए 19 अगस्त को कहा था कि उसके चरमपंथी जिहाद के एक नये दौर के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं
इस्लामिक स्टेट ने कल हुए हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में अपना जिहादी अभियान जारी रखेगा.
इसके साथ ही सार्वजनिक छवि के मामले में इस्लामिक स्टेट दुनिया के जिहादियों की नज़र में तालिबान की धार्मिक साख़ पर चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहा है.
इस्लामिक स्टेट को ये भी उम्मीद होगी कि वह तालिबान के उन कट्टरपंथियों का भरोसा हासिल कर ले जो कि इस समय तालिबान की मौजूदा व्यवहारिक नीतियों से खुश नहीं हैं.
इस्लामिक स्टेट ने कहा है कि क़तर के “शानदार होटलों में” हुए गुप्त समझौतों के आधार पर अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान को तालिबान को एक चांदी की तश्तरी में सौंप दिया है.
इस्लामिक स्टेट ने अपने प्रतिद्वंदी को अमेरिकी पिट्ठू करार दिया है. और कहा है कि अब तालिबान इस इलाके में अमेरिका की तरफ़ से असली जिहादियों से जंग करेगा.
इस्लामिक स्टेट एक ऐसा समूह है जो कि मीडिया में छाए रहने पर फलता-फूलता है. ऐसे में यह संगठन तालिबान के ख़बरों में आने से भी नाराज़ हो सकता है. काबुल एयरपोर्ट जैसे बड़े हमलों के ज़रिए सुर्खियों में छाए रहने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता.
हालांकि, साल 2019 में तालिबान और अमेरिका के दो-तरफा हमले में इस्लामिक स्टेट का नुकसान हुआ था. लेकिन साल भर के अंदर ही इस्लामिक स्टेट एक बार फिर मजबूती से सामने आ गया था.
इस संगठन ने साल 2021 के शुरुआती महीनों में अपने हमलों को भी बढ़ा दिया. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान में इस संगठन की गतिविधियों में लगातार उतार-चढ़ाव देखे गए हैं.
हाल के महीनों में इस्लामिक स्टेट बड़े हमले करने में सफल नहीं रहा है. लेकिन ये हमला दिखाता है कि इस संगठन के पास, काबुल जैसे शहर में भारी सुरक्षा के बावजूद, घातक हमला करने की क्षमता है.
अजीब मुश्किल में फंसा अल-क़ायदा
उधर गुरुवार को एयरपोर्ट पर हुए हमले के बाद अल-क़ायदा और उसके समर्थक एक अजीब स्थिति में हैं. अल-क़ायदा एक ऐसे हमले की तारीफ़ करना चाहेगा जिसमें अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई हो, क्योंकि अल – क़ायदा का सबसे प्रमुख दुशमन अमेरिका है.
लेकिन ये हमला अल-क़ायदा के प्रतिद्वंद्वी इस्लामिक स्टेट ने किया है और यह अल-क़ायदा के सहयोगी समझे जाने वाले तालिबान की छवि ख़राब करता है. टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप पर अल-क़ायदा समर्थक इस्लामिक स्टेट के बयान पर टिप्पणी करने से बचते नज़र आए.
लेकिन उनके एक हाई-प्रोफाइल प्रशंसक, वरिथ अल – कस्सम ने कहा कि एक ऐसा हमला जिसमें अमेरिकियों की जान गयी है, उसकी तारीफ़ करने में कोई गुरेज़ नहीं है, चाहे वो हमला प्रतिद्वंदी जिहादी संगठन ने ही क्यों न किया हो.
सीरिया के जिहादी संगठन, हयात तहरीर अल-शाम के एक समर्थक अल-ज़हाबी ने इस हमले की निंदा की है. वे कहते हैं कि इस्लामिलक स्टेट ने ये हमला तालिबान के सुरक्षा व्यवस्था कायम करने के प्रयासों को विफल करने के लिए किया गया था. अल-ज़हाबी के मुताबिक ये हमला बताता है कि इस्लामिक स्टेट तालिबान से कितना जलता है और हमेशा ख़बरों में बने रहना चाहता है.
एक अन्य मौलवी, अल-हसन बिन अली अल-कित्तानी कहते हैं कि इस हमले ने सिर्फ इस्लाम और मुसलमानों को नुकसान पहुंचाया, ऐसे में इस्लामिक स्टेट का ये हमला “मूर्खतापूर्ण” और लापरवाही से भरा था.