DU के बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी पाठ्यक्रम से हटाई गई महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’
नई दिल्ली. दिल्ली विश्वविद्यालय अकादमिक परिषद (Delhi University Academic Council) ने मंगलवार को पाठ्यक्रम में बदलाव को मंजूरी देते हुए बीए (ऑनर्स) के अंग्रेजी पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी (Mahasweta Devi) की चर्चित लघुकथा ‘द्रौपदी’(Draupadi) को हटा दिया. इसके अलावा परिषद ने मंगलवार को अपनी 12 घंटे की लंबी बैठक में सदस्यों की भारी असहमति को खारिज करते हुए 2022-23 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और चार वर्षीय अंडरग्रेजुएट कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को भी मंजूरी दे दी.
शैक्षणिक मामलों की स्थायी समिति ने सोमवार को अपनी बैठक में 2022-23 से एनईपी के कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी. कुछ सदस्यों ने कहा कि परिषद के एक वर्ग के विरोध के बावजूद बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी के पांचवें सेमेस्टर के पाठ्यक्रम और नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई. इस मामले पर अब विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद द्वारा विचार विमर्श किया जाएगा.
अकादमिक परिषद के सदस्य मिठूराज धूसिया ने किया विरोध
डीयू के सूत्रों ने बताया कि अकादमिक परिषद ने महाश्वेता देवी की लघु कहानी को हटा दिया. जबकि कम से कम 14 सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में बदलाव पर एक असहमति नोट दिया था. पाठ्यक्रमों से संबंधित निगरानी समिति ने पहले पाठ्यक्रम में कुछ बदलावों का सुझाव दिया था, जिसका बैठक में विरोध किया गया था. अकादमिक परिषद के सदस्य मिठूराज धूसिया ने कहा, “हम निरीक्षण समिति के अतिरेक का कड़ा विरोध करते हैं, जिसने मनमाने ढंग से फैकल्टी, कोर्स कमेटी और स्टैंडिंग कमेटी जैसे सांविधिक निकायों को दरकिनार करते हुए पाचवें सेमेस्टर के लिए लर्निंग आउटकम बेस्ड कैरिकुलम फ्रेमवर्क वाले नये अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रम में बदलाव किये हैं.”
इसके साथ उन्होंने कहा कि दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को मनमाने ढंग से हटाया गया. उन्होंने आगे कहा कि फिर एक आदिवासी महिला के बारे में महाश्वेता देवी की एक कहानी “द्रौपदी” को भी हटा दिया गया. यह ध्यान देने योग्य है कि इस निगरानी समिति में संबंधित विभागों के कोई विशेषज्ञ नहीं थे जिनका पाठ्यक्रम बदल दिया गया था. इस तरह पाठ्यक्रम से कहानी को हटाये जाने के पीछे कोई तर्क नहीं है.
मिठूराज धूसिया ने कहा कि एमईईएस या अन्य एजेंडा मदों के साथ चार वर्षीय अंडरग्रेजुएट कार्यक्रमों के मामले पर अकादमिक परिषद में ‘कोई पर्याप्त चर्चा’ की अनुमति नहीं थी. उन्होंने कहा,”मतदान की अनुमति नहीं दी गयी थी और निर्वाचित सदस्यों को असहमति नोट जमा करने के लिए कहा गया था. यह वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. स्थायी समिति में 27 सदस्यों के साथ चर्चा, 100 से अधिक सदस्यों के साथ अकादमिक परिषद में चर्चा के समान नहीं है.”