अलग धर्मों के वयस्कों ने शादी कर ली सिर्फ इसलिए हम नहीं करा सकते जांच- सुप्रीम कोर्ट 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वह हमेशा दो वयस्कों का एक साथ रहने के फैसले का सम्मान करेगा. कोर्ट ने कहा कि वह किसी शादी की जांच सिर्फ इसलिए नहीं करेगा क्योंकि पुरुष और महिला अलग-अलग धर्मों के हैं. जस्टिस उदय यू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने एक  युवती की माता-पिता की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘एक सिस्टम और संस्था के तौर पर हमें एक जोड़े के फैसले का सम्मान करना चाहिए.’ दरअसल, परिजनों ने अपनी याचिका में दावा किया कि युवती को जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया. दाव किया गया कि युवती की इच्छा के खिलाफ एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी कराई गई.

माता-पिता द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आरोप लगाया गया कि युवती को पुरुष ने अवैध रूप से कैद किया है. याचिका में कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन के बाद उनकी कथित शादी की परिस्थितियों की जांच होनी चाहिए. हालांकि अदालत ने कहा कि ‘एक सिस्टम के तौर पर हमें एक जोड़े की गोपनीयता में दखल नहीं देना चाहिए. अगर कोई पुरुष और महिला एक साथ रहना चाहते हैं तो हमें वयस्कों के रूप में उनके फैसले का सम्मान करना होगा.’

अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार- पीठ ने युवती द्वारा चंडीगढ़ में पुलिस अधिकारियों को दिए गए एक बयान पर भरोसा किया जहां दंपति एक साथ रहते थे. केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के वकील शांतनु सागर द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में युवती द्वारा दिए गए बयान को शामिल करते हुए कहा गया है कि वह अपनी मर्जी से पुरुष के साथ रह रही है और कोई जबरदस्ती नहीं है. युवती ने यह भी कहा कि उसके माता-पिता इस शादी के खिलाफ थे लेकिन उन्होंने जनवरी में शादी कर ली और अब खुशी-खुशी उसके साथ रह रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या युवती की लिखावट पर है शक?
कोर्ट ने कहा कि ‘उनका (युवती) बयान देखें. उन्होंने पुलिस को बताया है कि अपनी मर्जी से शादी की है. देखिए किस तरह से पत्र लिखा गया है. सभी अक्षर सीधे हैं और कोई कट नहीं है. पत्र से पता चलता है कि इसको लिखने वाला किसी भी तरह के दबाव में नहीं है.’ अदालत ने माता-पिता के वकील से पूछा कि क्या वे पुलिस को दिए गए बयान में युवती की लिखावट पर शक है?

पीठ ने माता-पिता के वकील सुदर्शन मेनन से कहा- ‘चूंकि आप लिखावट पर संदेह नहीं कर रहे हैं, हम आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते. जबरन बयान देने वाला व्यक्ति ऐसा नहीं लिखेगा. यह एक स्पष्ट मामला है कि एक पुरुष या महिला एक पत्र लिखते समय पूरी तरह से होश-ओ-हवास में है. मेनन ने कहा कि लिखावट पर संदेह नहीं है इसके बाद अदालत ने कहा कि यह हमारे हस्तक्षेप का मामला नहीं है. दंपति द्वारा किए गए फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए. इसके बाद वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया.

Related Articles

Back to top button