तालिबान की सोशल मीडिया पर नजर
तालिबान ने 2001 में इंटरनेट पर पाबंदी लगाई थी, अब वही सोशल मीडिया से लोगों को धमका रहा
अफगानिस्तान में 2005 में केवल दस लाख मोबाइल फोन थे। 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 2.2 करोड़ हो गई है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यहां की 70 प्रतिशत आबादी के पास मोबाइल फोन है। अब यही फोन तालिबानियों को अपनी हुकूमत कायम करने का जरिया दिख रहा है। कोशिशें भी साफ नजर आ रही हैं। एक वीडियो में तालिबानी अधिकारी महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करते हैं कि वे काम जारी रख सकती हैं। एक अन्य में कुछ उग्रपंथी सिखों से कहते हैं कि वे आजाद और सुरक्षित हैं।
कुछ अन्य वीडियो दिखाते हैं कि काबुल में नए किस्म का कानून का शासन चल रहा है। तालिबान लड़ाकों ने लुटेरों और चोरों को बंदूक की नोक पर रोक रखा है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान ने विरोध को काबू करने और अपने संदेशों को प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया को ताकतवर माध्यम बना रखा है। वे हजारों टि्वटर अकाउंट से देश के डरे हुए लोगों को भरोसा दिलाते हैं।
अफगान में स्थिरता के तालिबान का सोशल मीडिया अभियान
हालांकि, तालिबान द्वारा पेश की जा रही शांति और स्थिरता की तस्वीर से अलग दुनियाभर में काबुल विमानतल पर अराजकता और विरोधियों की पिटाई, उन्हें गोली मारने जैसे दृश्य प्रसारित हो रहे हैं। कट्टर धार्मिक झुकाव और हिंसा का सहारा लेने के बावजूद उग्रवादियों ने बीते वर्षों में इंटरनेट का इस्तेमाल करना सीख लिया है। तालिबान ने 200़1 में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया था। तालिबान के कई आलोचक और पूर्व सरकार के समर्थक भूमिगत हो गए हैं। पिछले कुछ समय से तालिबानियों ने सोशल मीडिया अभियान के माध्यम से अफगान सेना को हथियार डालने के लिए प्रेरित किया है।
नेवल पोस्टग्रेजुएट स्कूल, मोंटेरी, कैलिफोर्निया के प्रोफेसर थॉमस जॉनसन कहते हैं, तालिबानियों ने समझ लिया है कि युद्ध जीतने के लिए किस्से-कहानियों का सहारा लेना चाहिए। शहरी इलाकों में सभी अफगानियों के पास स्मार्टफोन हैं। तालिबान विरोधी भी अरब देशों में अरब वसंत आंदोलन के दौरान संगठित होने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किए जाने की रणनीति पर चलेंगे।
अत्याचारों का खुलासा करने और समर्थन जुटाने के लिए इस माध्यम का ज्यादा उपयोग होगा। इस समय डू नॉट चेंज नेशनल फ्लैग जैसे हैशटैग चल रहे हैं। तालिबान ने ऐसी अपीलों का जवाब दमन और हत्याओं से दिया है। यह बात अलग है कि वे शांति और एकता के संदेश जारी करते हैं। तालिबान समर्थक कारी सई खोस्ती ने टि्वटर पर एक पोस्ट में लिखा, हमने कहा था कि टॉमी गनी तुम लोगों के प्रति वफादार नहीं हो सकता है।
सोशल मीडिया पर तालिबानियों के लिए बंदिशें, पर रास्ते भी
देश से भाग चुके राष्ट्रपति अशरफ गनी के लिए टॉमी गनी शब्द का उपयोग किया गया। तालिबान जो चाहते हैं, ऑनलाइन पोस्ट करते हैं। फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मो द्वारा ब्लॉक किए जाने पर दर्जनों नए अकाउंट बन जाते हैं। उग्रवादियों ने टि्वटर पर ज्यादा फोकस किया है। यहां तालिबान पर सीधा प्रतिबंध नहीं है।
कुछ तालिबान विरोधियों ने सोशल मीडिया पर विरोध तेज किया है। वहीं अन्य लोग खामोश हो गए हैं। उन्होंने ऐसा कंटेंट हटा लिया है जिससे खतरा हो सकता है। एक महिला फुटबॉल खिलाड़ी ने इस सप्ताह अपने साथी खिलाड़ियों को फोटो हटाने के लिए कहा था। वैसे, फेसबुक, टि्वटर ने कहा है, वे ऐसे अकाउंट को बचाने के कदम उठाएंगे। नंगरहार यूनिवर्सिटी, जलालाबाद के एक शिक्षक ने बताया कि तालिबान विरोधी अभियानों में भाग लेने वाले कई छात्रों ने अपने अकाउंट बंद कर दिए हैं।
अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में जारी होता है कंटेंट
तालिबान ने इंटरनेट को प्रोपेगंडा का नया टूल बना लिया है। वे होस्टिंग सेवाओं द्वारा बंद की गई वेबसाइट को फिर चालू कर लेते हैं। टेक्स्ट मैसेज की भरमार करते हैं। उन्होंने 2019 के चुनाव में वोटरों को डराने-धमकाने के लिए हैशटैग का उपयोग किया था। विदेशों तक पहुंच के लिए तालिबानी नेता अंग्रेजी में मैसेज करते हैं। प्रेस कांफ्रेंस की लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है। तालिबान की सरकारी वेबसाइट अल-एमाराह अंग्रेजी, पश्तो, डारी, उर्दू और अरेबिक में कंटेंट जारी करती है। रिसर्चर अब्दुल रशीद बताते हैं, स्मार्ट फोन तालिबानियों का प्रमुख हथियार है।