भारत का करीबी यह नेता अफगान में तालिबान के लिए बन सकता है बड़ी चुनौती, पाक मानता है अपना दुश्मन
अफगानिस्तान पर भले ही तालिबान का कब्जा हो गया है, मगर तालिबान की चिंता की लकीरें अभी भी मिटीं नहीं हैं। भारत के करीबी माने जाने वाले और अशरफ घनी के मुल्क छोड़कर भागने के बाद खुद को अफगानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरूल्ला सालेह तालिबान के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। सालेह अफगानिस्तान में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक हैं और कई मायनों में महान अहमद शाह मसूद के सच्चे उत्तराधिकारी हैं। इतना ही नहीं, सालेह को पाकिस्तान अपना कट्टर दुश्मन मानता है। इसकी वजह है कि पाकिस्तान जहां तालिबानियों का समर्थक रहा है, वहीं सालेह का आतंकियों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। बता दें कि बीते दिनों अशरफ गनी देश छोड़कर यूएई चले गए थे और रविवार को तालिबानियों ने कब्जा कर लिया।
फिलहाल, अमरूल्ला सालेह तालिबान के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं, क्योंकि वह पंजशीर में जाकर तालिबान के खिलाफ रणनीति बना रहे हैं। सालेह ने गुरुवार को भी इशारा किया कि वह तालिबान के आगे नहीं झुकने वाले हैं। उन्होंने कहा कि आतंक के आका पाकिस्तान पर हमला करते हुए कहा कि अफगानिस्तान इतना बड़ा है कि पाकिस्तान उसे निगल नहीं सकता और तालिबान उस पर शासन नहीं कर सकता। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में तालिबान का झंडा उतारने और अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज लहराने वाले नागरिकों को सलाम भी किया।
अमरूल्ला सालेह के साथ काम कर चुके और उन्हें वर्षों से जानने वाले कई भारतीय राजनयिक और सुरक्षा विशेषज्ञ उन्हें एक निडर और अपने आदर्शों के लिए लड़ने के लिए हमेशा तत्पर राष्ट्रवादी के रूप में गिनते हैं। अफगानिस्तान में भारत के पूर्व दूत अमर सिन्हा ने सालेह के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहते हैं कि मैं उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (कार्यवाहक राष्ट्रपति) को एक करीबी और भरोसेमंद दोस्त के रूप में मानता हूं। मुझे पंजशीर में उनके घर पर भी उनके साथ काफी समय बिताने का अवसर मिला। काबुल की असुरक्षा के कारण जब भी हम वहां (पंजशीर) गए तो आजादी का अहसास हुआ। हम पैदल चले, हमने ट्रेक किया और बाइक की सवारी की। वहां सुरक्षा चिंता की चिंता नहीं थी। वह दिल से राष्ट्रवादी हैं।
पूर्व डिप्टी एनएसए एसडी प्रधान ने सालेह को तीक्ष्ण दिमाग वाला व्यक्ति बताया। उन्होंने कहा कि 2001 से वह तालिबान विरोधी अभियान में शामिल थे और 2004 में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनएसडी) के रूप में जानी जाने वाली अफगान खुफिया एजेंसी का गठन किया। इस प्रक्रिया में उन्होंने मुखबिरों का एक बेहतर नेटवर्क विकसित किया था। प्रधान के अनुसार, सालेह शायद उन कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों में शामिल हैं, जिन्होंने भारत और रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा है। प्रधान ने आगे कहा कि दोनों देशों में उन्हें अहम समर्थन प्राप्त है। तालिबान विरोधी अभियान के लिए खुफिया जानकारी जुटाने की उनकी क्षमता अमूल्य होगी। अगर रूस उनका समर्थन करता है, जिसकी कुछ समय बाद बहुत संभावना है, तो वह कम से कम देश के उत्तरी हिस्से में तालिबान को दूर रख सक सकते हैं।
पंजशीर लौटे सालेह
फिलहाल, 17 अगस्त 2021 को सालेह पंजशीर घाटी (जहां से उन्होंने शुरुआत की थी) लौट आए हैं और उन्होंने अफगानिस्तान के संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। एक ऑडियो संदेश में सालेह ने कहा कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, अगर राष्ट्रपति अनुपस्थित है या वह इस्तीफा दे देता है और वह अपने कर्तव्यों को चलाने में असमर्थ हो जाता है, तो पहला उपराष्ट्रपति खुद ब खुद वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है। यह बिना किसी कारण के है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान सालेह को तालिबान का दुश्मन मानता है क्योंकि उन्होंने 1996-2001 के दौरान और बाद में अफगान जासूसी एजेंसी एनडीएस के प्रमुख के रूप में तालिबान से निपटा था।
पंजशीर में तालिबान केक खिलाफ खेमेबंदी तेज
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बीच उसकी हुकूमत के खिलाफ खेमेबंदी तेज हो गई है। संगठन से निपटने की रणनीति तैयार करने के लिए तालिबान विरोधी ताकतें बेहद खतरनाक पंजशीर घाटी में इकट्ठा हुई हैं। इनमें पूर्व उपराष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह और अफगान सरकार के वफादार सिपहसालार जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम व अता मोहम्मद नूर के अलावा नॉदर्न अलायंस से जुड़े अहमद मसूद की फौजें शामिल हैं। अहमद मसूद ‘पंजशीर के शेर’ के नाम से मशहूर पूर्व अफगान नेता अहमद शाह मसूद के बेटे हैं।