अफगानिस्‍तान: 1996 और 2021 के तालिबानियों में है बड़ा अंतर, भारत पर क्‍या होगा असर, बता रहे हैं विशेषज्ञ

नई दिल्‍ली. अफगानिस्‍तान पर एक बार फिर तालिबान ने कब्‍जा कर लिया है और जल्‍द ही देश में इस्‍लामिक सरकार बनाने का भी ऐलान किया है. 20 साल के संघर्ष के बाद तालिबान लड़ाकों ने अफगानिस्‍तान की राजधानी काबुल को कब्‍जे में करने के साथ ही वहां  तमाम शासकीय गतिविधियां भी शुरू कर दी हैं. जिसके बाद अफगानिस्‍तान से डर, हिंसा, महिलाओं की मार्मिक अपीलों की कई तस्‍वीरें भी सामने आ रही हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब अफगानिस्‍तान पर तालिबान ने कब्‍जा किया है. 20 साल पहले भी तालिबान यहां शासन कर चुका है.

अफगानिस्‍तान में 1996 से लेकर 2001 तक तालिबानी शासन रह चुका है. बंदूक और ताकत के बल पर सत्‍ता को छीनने वाले तालिबान के पिछले शासन की तमाम खौफनाक यादें अभी भी वहां के लोगों को याद हैं. पिछले शासन में महिलाओं पर बेतहाशा जुल्‍म के साथ ही तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति नजीबुल्‍लाह को को मारकर बिजली के खंभे से लटका दिया था. यही वजह है कि 2021 में फिर दोबारा तालिबान के कब्‍जा करने के बाद न केवल अफगानी लोग भयभीत हैं बल्कि अन्‍य देशों में भी चिंता और कौतुहल है.

इन 10 पॉइंट में जानिए तालिबान ने कितना किया खुद में बदलाव

1996 के मुकाबले इस बार तालिबान ज्‍यादा मजबूत होकर उभरा है. जिस तालिबान से अमेरिका पिछले 20 सालों से लड़ रहा है, अभी वह इन्‍हीं से बात करके वहां से निकलना चाह रहा था, ऐसे में अमेरिका जैसे बड़े और सशक्‍त देश के खिलाफ यह तालिबान की बड़ी जीत है.

 

पिछले कुछ सालों से जबसे तालिबान ने दोहा में अपना दफ्तर खोला है तब से तालिबानी लगातार अंतरराष्‍ट्रीय प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करके विश्‍व की मीडिया से मुखातिब होते रहे हैं. इस दौरान उन्‍होंने अपने पुराने अतिवादी-आतंकवादी के चेहरे को सामान्‍य और संघर्षशील दिखाने की कोशिश की है और यह जताने की कोशिश की है कि वे यहां हुकूमत चला सकते हैं. इसे लेकर स्‍वीकार्यता या लेजिटिमेसी भी आई और ये सिस्‍टेमेटिक तरीके से इसकी तैयारी कर रहे थे.

इस बार तालिबान ने अपने आप को सैन्‍य के अलावा कूटनीतिक और योजनागत तरीके से भी मजबूत किया है. 1996 के दौरान तालिबान ने अफगानिस्‍तान से सटी सीमाएं खुली छोड़ दी थीं और 2001 में इन्‍हें अफगानी और अमेरिकी लोगों से हारना पड़ा था लेकिन इस बार उन्‍होंने यह गलती नहीं की है. इस बार हर तरफ से सीमाएं सील कर आगे बढ़े हैं. यही वजह है कि महज चार-छह दिन के भीतर ही 25-26 सूबे कब्‍जा लिए और तालिबानी लड़ाके कंधार और काबुल जैसे बड़े शहरों को घेरने में सफल हो गए.

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