1947 से पहले ही बनी दो सरकारे?
नेहरू से पहले हिन्दुस्तान की 2 सरकारें बनी थीं, प्रधानमंत्री बने थे, कैबिनेट भी चुनी गई थी, पर अंग्रेजों ने सरकार गिरा दी
15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिलते ही जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उनसे पहले ब्रिटिश काल में दो बार प्रोविजिनल सरकारें बनी थीं। ‘हुकूमत-ए-मोक्तार-ए-हिंद’ और ‘आजाद हिन्द’। पहली सरकार काबुल में 1 दिसंबर 1915 को बनी थी। इसमें बाकायदे पीएम बने, मंत्रिमडल चुना गया, राष्ट्रपति बने। अफगानिस्तान के साथ पहला समझौता किया गया। इसे अंग्रेजों के दुश्मन देशों जैसे जर्मनी, रूस और जापान का समर्थन भी था।
ये सरकार थी, गदर पार्टी की। इसमें पीएम थे, पत्रकार और लेखक मौलाना बरकतुल्ला खान और राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप। स्वंतत्रता आंदोलन के समय इस पार्टी की सरकार और उसके उठाए कदमों को इतिहास में दर्ज किया गया है।
गदर पार्टी की सरकार बनने के पीछे था साप्ताहिक अखबार
बरकतुल्ला खान साल 1900 के आसपास से ही एक साप्ताहिक अखबार गदर निकाल रहे थे। इसमें उनके लेख अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते थे। बरकतुल्ला खान के अलावा इसमें चम्पक रामन पिल्लई, भूपेन्द्रनाथ दत्ता, राजा महेंद्र प्रताप और अब्दुल वहीद खान जैसे लोग लिखते थे।
गदर पार्टी के सम्मेलन की तस्वीर।
आउटलुक के एक आर्टिकल के अनुसार, गदर के लेखों में राजनीतिक सूझबूझ की चर्चा अमेरिका से लेकर जर्मनी तक होने लगी थी। इसी के बाद प्रकाशन के लोग और लेखकों ने मिलकर 13 मार्च 1913 को गदर पार्टी बनाई। इसके तुरंत बाद 120 भारतीयों का एक सम्मेलन किया गया। जल्द ही विदेश से सोहन सिंह बहकना और लाला हरदयाल जैसे लोग शामिल हुए।
अंग्रेजों ने नेताओं को काबुल में कैद कराया तो बाहर आकर सरकार बना ली
इस पार्टी के प्रयासों से 1914 से शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में बर्लिन में लड़ रहे हिंदुस्तान सैनिकों ने अंग्रेजों के लिए लड़ने से मना कर दिया। इसके बाद राजा महेंद्र और बरकतुल्ला अंग्रेजों के खिलाफ विदेशी ताकतों को इकट्ठा करने तुर्की, बगदाद और फिर अफगानिस्तान गए।
काबुल में इन दोनों नेताओं को अंग्रेजी सेना के अफसरों ने नजरबंद कर दिया, लेकिन जर्मन सरकार और स्थानीय अफगानियों के विरोध के चलते इन्हें रिहा करना पड़ा। इसी के बाद पार्टी ने महसूस किया कि भारत को अस्थाई सरकार की जरूरत है।
कैद से आजाद होते ही दोनों के प्रयासों से दिसंबर 1915 में जर्मनी सरकार के सपोर्ट से काबुल में अस्थाई सरकार का गठन किया गया। जर्मनी की सरकार ने इसे हिंदुस्तान सरकार के तौर पर मान्यता दी। आउटलुक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उबैद अल सिंधी को भारतीय गृह मंत्री, मौलवी बशीर को युद्ध मंत्री, चंपक करण पिल्लई को विदेशी मंत्री बनाया गया था।
गदर पार्टी की सरकार को जनसमर्थन मिलने लगा था।
अफगान सरकार के साथ पहला समझौता किया, फिर पीएम मॉस्को गए
गदर पार्टी की सरकार ने पहला समझौता अफगान सरकार से किया। अफगानिस्तान ने वादा किया था कि वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में भारत की मदद करेगा।
इसके बाद महेंद्र प्रताप चीन, मंगोलिया और दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से समर्थन जुटाने चले गए। साल 1917 की अक्टूबर क्रांति से रूस की जारशाही का तख्ता पलट हुआ और 1919 में बरकतुल्ला ने मॉस्को पहुंचकर लेनिन का समर्थन हासिल किया।
अंग्रेजी हुकूमत ने 1919 में इस सरकार को गिरा दिया था
इस पार्टी ने महज 4 सालों में देश के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर जमकर काम करना शुरू कर दिया था। तब अंग्रेजी सरकार ने 1919 में गदर पार्टी के अखबार को बंद करा दिया और अस्थाई सरकार का दमन शुरू कर दिया। इससे सरकार टूट गई।
आउटलुक की रिपोर्ट का दावा है कि इस सरकार और आंदोलन से बाघा जतिन, रासबिहारी बोस, लाला हरदयाल, सचिन सान्याल, भूपेंद्रनाथ दत्त, करतार सिंह सराभा जैसे लोग निकले और इन्होंने सुभाष चंद्र बोस के लिए जमीन बनाई। इसी के आधार पर बोस ने ब्रिटिश भारत की दूसरी सरकार ‘आजाद-हिन्द’ बनाई थी। हालांकि उनकी सरकार में इस तरह से पीएम और राष्ट्रपति नहीं चुने गए थे।