गांधी और दलित चेतना का वीकास
बापू ने रायपुर में फूंका था छुआछुत से आजादी का बिगुल, पहली बार दलित समुदाय को मिला था मंदिर में पूजा करने का अधिकार
छत्तीसगढ़ में पहली बार गांधीजी 20 दिसंबर 1920 को आए थे। बापू को पं. सुंदरलाल शर्मा धमतरी में चल रहे कंडेल नहर सत्याग्रह के सिलसिले में कोलकाता से लेकर आए थे। उन्होंने धमतरी और कुरूद का भी दौरा किया।
रायपुर. Independence Day 2020: छत्तीसगढ़ का रायपुर शहर स्वतंत्रता आंदोलन की बहुत सी यादों को खुद में समेटे हुए हैं। इसी जमीन से ‘बापू’ ने छुआछूत की बुराई से आजादी का बिगुल फूंका था। बात 1933 की है। देशभर में लोगों को आंदोलन के लिए तैयार कर रहे महात्मा गांधी 22 नवम्बर को रायपुर पहुंचे। वे यहां एक सप्ताह तक रहे।
इस बीच उन्होंने पुरानी बस्ती के जैतूसाव मठ में बने कुएं का पानी एक सफाई कर्मचारी की बेटी के हाथोंं पीया था। कुएं से पानी निकालने वाले भी सफाई कर्मचारी ही थे। बाद में कांग्रेस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने भी ऐसा किया। बाद में वे सफाई कर्मियों को मठ के हनुमान मंदिर में पूजा कराने भी ले गए। यह पहला अवसर था जब रायपुर में दलित समुदाय को मंदिर में पूजा का सार्वजनिक अधिकार मिला।
वे खुद मठ के प्रमुख महंत लक्ष्मीनारायण दास के यहां भी गए थे। उस जमाने में सफाई कर्मचारियों को ओछी नजरों से देखा जाता था। गांधी ने इस खली परम्परा को तोड़कर दलितों को अधिकार दिलाने की शुरुआत कर दी थी। गांधीजी रायपुर के लोगों को यह बात समझाना चाहते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है, सफाई खुद भी करें और दूसरों को भी करने दें।
पहली बार 1920में आए थे बापू
छत्तीसगढ़ में पहली बार गांधीजी 20 दिसंबर 1920 को आए थे। बापू को पं. सुंदरलाल शर्मा धमतरी में चल रहे कंडेल नहर सत्याग्रह के सिलसिले में कोलकाता से लेकर आए थे। उन्होंने धमतरी और कुरूद का भी दौरा किया। इस समय बापू एक ही दिन रुके थे, लेकिन उन्होंने लोगों के अंदर आजाद भारत का सपना बुना था और अंग्रेजों के खिलाफ लोगों के अंदर आक्रोश को देखकर कुछ लोगों के अंदर देशप्रेम का जज्बा जगाया था। इसी समय रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ। पं. रविशंकर शुक्ल इसके प्रथम सचिव बनाए गए।
शुक्ल भवन के चबूतरा पर करते थे प्रार्थना
उस समय गांधीजी बूढ़ापारा स्थित पं. रविशंकर शुक्ल भवन में एक सप्ताह तक रुके थे। वे वहीं चबूतरे पर बैठकर प्रार्थना किया करते थे। उस समय उनकी प्रार्थना को सुनकर कुछ बच्चे भी आकर उनके साथ प्रार्थना करते थे।
आजादी के बाद समाज का नजरिया बदला है। अब दलित भी समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। गांधी जी ने रायपुर से इसकी शुरुआत की थी जो पूरे देश में फैली।
-डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र, इतिहासकार