विपक्ष के हंगामे की वजह से 5 साल में संसद का सबसे कम प्रोडक्टिव सेशन रहा मानसून सत्र; बिना बहस के 15 बिल पास हुए

संसद का मानसून सत्र तय समय से दो दिन पहले ही खत्म हो गया। 19 दिन चला ये सेशन इस लोकसभा का सबसे कम प्रोडक्टिव सेशन रहा। 19 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र के दौरान कुल 19 दिन संसद के दोनों सदन चलने थे, लेकिन केवल 17 दिन ही चले। लोकसभा की प्रोडक्टिविटी केवल 22% रही तो राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी केवल 29%।

लोकसभा में इस दौरान कुल 96 घंटे कामकाज होना था, लेकिन सिर्फ 21 घंटे 14 मिनट ही काम हुआ। यानी, कामकाज के तय घंटों में से 74 घंटे 46 मिनट काम नहीं हो सका। इस दौरान 20 बिल पास किए गए। इनमें OBC बिल भी शामिल है। जिसमें OBC लिस्ट तैयार करने का अधिकार एक बार फिर राज्यों को दे दिया गया।

मौजूदा लोकसभा का सबसे कम प्रोडक्टिव सेशन

2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद अब तक 6 सेशन हुए हैं। इनमें ये सबसे कम प्रोडक्टिव सेशन रहा है। मौजूदा लोकसभा में ये लगातार चौथी बार है जब सेशन की कुल अवधि को कम किया गया है। वहीं, 2020 का शीतकालीन सत्र कोरोना के चलते स्थगित कर दिया गया था। इस सेशन में पास हुए कई बिल बिना किसी चर्चा के ही पास कर दिए गए।

हंगामे के बीच 15 बिल पास हुए

इस हंगामेदार मानसून सत्र के दौरान 15 बिल सदन में पास हुए। वैसे मौजूदा सत्र में कुल 20 बिल पेश हुए। संसद में एक बिल पेश होने के औसतन सात दिन के भीतर वह पास हो गया। कुछ बिल तो पेश होने के अगले ही दिन पास कर दिए गए।

मौजूदा लोकसभा में तो 70% बिल एक ही सेशन में पेश हुए और पास हो गए। इससे पहले पिछली लोकसभा में एक ही सेशन में बिल पेश और पास होने का औसत 33% था।

लोकसभा ने औसतन 34 मिनट में तो राज्यसभा ने औसतन 46 मिनट में एक बिल को पास किया

मौजूदा सत्र में लोकसभा में जितने बिल पास हुए हैं उनमें एक बिल पर औसतन 34 मिनट चर्चा हुई। कुछ बिल तो पेश होने के बाद महज 5 मिनट बाद पास भी हो गए। वहीं, राज्यसभा में एक बिल के पास होने से पहले उस पर औसतन 46 मिनट चर्चा हुई।

केवल 127वां संविधान संशोधन बिल ऐसा बिल रहा, जिसके पास होने से पहले दोनों सदनों में 1 घंटे से ज्यादा चर्चा हुई। ये बिल 9 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया। करीब 8 घंटे की चर्चा के बाद 10 अगस्त को ये बिल लोकसभा से पास हुआ। इसके बाद राज्यसभा में भी 6 घटे की चर्चा के बाद इसे 11 अगस्त को पास कर दिया गया। इसके पास होने से आरक्षण के लिए OBC लिस्ट तैयार करने का अधिकार राज्यों को मिल जाएगा।

मौजूदा लोकसभा की बात करें तो एक बिल को पास करने से पहले लोकसभा में औसतन 2 घंटे 23 मिनट चर्चा होती है। वहीं, राज्यसभा किसी बिल को पास करने से पहले औसतन 2 घंटे चर्चा करती है। इस सत्र में लोकसभा में 15 बिल बिना किसी चर्चा के पास कर दिए गए।

इस सत्र में एक भी बिल संसदीय कमेटी को नहीं भेजा गया

मोदी सरकार में किसी भी बिल को संसदीय कमेटी को भेजने का चलन घटा है। यूपीए-1 में जहां 60% बिल संसदीय कमेटी के पास भेजे गए। वहीं, यूपीए-2 में 71% बिल संसदीय कमेटी को भेजे गए। नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में महज 27% बिल संसदीय कमेटी को भेजे गए। मौजूदा लोकसभा में ये और कम हो गया है। इस लोकसभा में अब तक केवल 12% बिल ही संसदीय कमेटी को भेजे गए हैं।

इस बार के मानसून सत्र में एक भी बिल संसदीय कमेटी को नहीं भेजा गया।

2016 के बाद सबसे कम प्रोडक्टिव रहा ये मानसून सत्र

मानसून सत्र के दौरान तय घंटों में से केवल 21 घंटे ही काम हो सका। लोकसभा की प्रोडक्टिविटी केवल 22% ही रही। ये 2016 के विंटर सेशन के बाद सबसे कम है। 2016 के विंटर सेशन की प्रोडक्टिविटी केवल 15% रही थी। राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 29% रही। पिछले 10 साल के दौरान 5 सत्र ऐसे रहे हैं जब राज्यसभा 25% से कम चली। प्रश्नकाल की बात करें तो लोकसभा में इसके लिए तय समय का 35% कार्यवाही चली। वहीं, राज्यसभा में प्रश्नकाल के लिए तय समय का 25% ही इस्तेमाल हुआ। इस दौरान दोनों सदनों में केवल 20% सवालों के जवाब दिए गए।

इस लोकसभा को अब तक नहीं मिला डिप्टी स्पीकर

लोकसभा का करीब आधा कार्यकाल खत्म होने को है, लेकिन अब तक लोकसभा में डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति नहीं हुई है। 70 साल के भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। जबकि 17वीं लोकसभा का पहला सेशन शुरू होने के बाद 788 दिन बीत चुके हैं। इससे पहले 12वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा 269 दिन बाद डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति हुई थी। पिछली लोकसभा की बात करें तो 70 दिन बाद ही डिप्टी स्पीकर चुन लिए गए थे।

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