देवस्थानम बोर्ड का विरोध तेज, 17 अगस्त से राज्य भर में आंदोलन करेंगे पुरोहित
देहरादून. उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड का विवाद लगातार बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. पिछले दिनों नए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पुरोहितों को मनाने की जो कोशिश की थी, वह नाकाम होती दिख रही है क्योंकि चार धाम से जुड़ी मंदिर समितियों और पुरोहितों के अलावा 47 अन्य मंदिरों ने राज्य स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी दे दी है. 2019 में बनाए गए देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग के साथ यह प्रदर्शन 17 अगस्त से शुरू करने की बात कही गई है.
देवस्थानम बोर्ड के गठन के खिलाफ बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहित पिछले कई हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे थे. अब इन्होंने ज़िला मुख्यालयों समेत उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी धरना देने का ऐलान कर दिया है. यही नहीं, ये पुरोहित उन जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं, जिन्होंने बोर्ड के पक्ष में अपनी राय रखी. क्यों विरोध पर उतारू है पुरोहित समुदाय?
चार धाम तीर्थ पुरोहित हक हुकूकधारी महापंचायत वही संस्था है, जिसने देवस्थानम बोर्ड के विरोध में मोर्चा खोलने का नेतृत्व किया है. एचटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस संस्था के अध्यक्ष कृष्णकांत कोठियाल ने कहा, “नए सीएम पुष्कर सिंह धामी सिर्फ बयानबाज़ी और लाग लपेट कर रहे हैं. एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर बोर्ड मामले को देखने की बात करने वाले धामी की राज्य सरकार पुरोहित समुदाय के हितों के लिए गंभीर नहीं दिख रही.”कोठियाल ने साफ तौर पर कहा कि दशकों से स्थानीय पुरोहित और मंदिर अपनी व्यवस्था खुद देख रहे थे, तो ऐसे बोर्ड को कानूनन थोपना कतई जायज़ नहीं कहा जा सकता. रिपोर्ट की मानें तो सरकार के खिलाफ विरोध की रणनीति बताते हुए महापंचायत से जुड़े लोगों ने यह भी दावा किया कि उनके विरोध को ज्योतिष द्वारका शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का साथ भी मिल चुका है.गौरतलब है कि बोर्ड भंग किए जाने की मांग को लेकर लगातार धरने पर बैठे केदारनाथ तीर्थ के पुरोहितों का विरोध प्रदर्शन बुधवार को 59 दिन पूरे कर रहा है. दूसरी तरफ, हाल में भाजपा ने कुछ स्थानीय पुजारियों आदि को पार्टी का सदस्य बनाने का दावा भी किया. बता दें कि उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार के समय में 2019 में देवस्थानम बोर्ड एक्ट के तहत बोर्ड को प्रशासन, प्रबंधन सौंपा गया था, जिसका विरोध पुरोहित तबसे ही कर रहे हैं.