पैरों में पड़ गए छाले लेकिन घर की चौखट अभी भी दूर, 40 दिन में 1280 किलोमीटर पैदल चल चुके है बेबस लोग
औरैया : जब ईश्वर किसी पर मेहरबान होता है तो हर तरह से उसे संपन्न कर देता है। मगर जब वह थोड़ा सा भी नाराज हो जाए तो समझ लो व्यक्ति को कहां से कहां तक ले जा सकता है। ऐसा ही एक नजारा उत्तर प्रदेश के जनपद औरैया की सदर कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत खानपुर चौराहे पर देखने को मिला। जिसमें हैदराबाद से बिहार अपने घर जा रहे कुछ मजदूरों ने खानपुर चौराहे पर रुककर अपनी व्यथा सुनाई। अपनी कहानी सुनाते सुनाते मजदूर रो पड़े और बताया कि वह लोग 1280 किलोमीटर अब तक पैदल चल चुके हैं। मगर अभी भी उन्हें अपनी दहलीज नसीब नहीं हुई है।
बिहार प्रांत के पुरानिया निवासी लालू सिंह ने बताया कि वह अपने क्षेत्र के करीब 14 लोगों के साथ काम करने के लिए हैदराबाद गए हुए थे। 4 माह पूर्व जब वह हैदराबाद पहुंचे तो उन्होंने वहां काम की तलाश की। इस दौरान उन्हें काम मिल गया और 2 महीने तक उन्होंने काम किया। उसी दौरान 25 मार्च को पूरे देश में लॉक डाउन घोषित कर दिया गया। जिस पर वह लोग अपनी मजदूरी से मिली तनख्वाह से भरण पोषण करने लगे। जब उनकी पूरी मजदूरी समाप्त हो गई तो वह लोग वहां फंस गए और उन्होंने वहां से निकलने की ठान ली और वह सभी लोग एकत्रित होकर अपना सामान उठाकर अपने प्रांत बिहार के लिए पैदल ही निकल पड़े।
हैदराबाद से निकलने के दौरान ही उन्हें एक स्थान पर जिला प्रशासन द्वारा रोका गया और उन्हें एक शेल्टर होम में रखकर उनकी देखभाल की गई। मगर सभी लोग अपने घर जाने की जिद पर अड़े रहे तो जिला प्रशासन द्वारा उनका चेकअप करा कर उन्हें रवाना कर दिया गया। मगर बिना पैसों के वह लोग कैसे सफर करते इसलिए उन्होंने पैदल ही चलना मुनासिब समझा और औरैया आते-आते उनके कदम रुक गए। पैरों में पड़े छाले को देखकर वह लोग एक दूसरे को सिर्फ सांत्वना ही देते हुए नजर आए। जब मजदूरों से जानकारी चाही गई कि उन लोगों द्वारा खाने की व्यवस्था कैसे की गई तो उन्होंने भरे हुए गले से बताया कि जहां उन्हें जो मिल जाता था। वह खा लेते थे नहीं तो वह अपने वतन की ओर पहुंचने की जल्दी में वहां से निकल आते थे। मगर अब उनके पैरों में इतनी ताकत नहीं रही कि वह 10 कदम भी चल सके।
उन्होंने बताया कि वह लोग 2 अप्रैल को हैदराबाद की एक शेल्टर हाउस से निकले थे जो सोमवार 11 मई को करीब 1280 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए औरैया पहुंचे हैं। अभी उन्हें करीब 1000 किलोमीटर का और सफर तय करना है मगर उन्हें अब नहीं लगता कि वह अपने वतन पहुंच पाएंगे और अपने परिजनों को देख भी पाएंगे।
रिपोर्टर-अरुण बाजपेयी, औरैया