हालात ने इन्हें मजदूर से मुसाफिर बना दिया, 27 दिन का डरावना साइकिल का सफर
यह दर बदर भटकते रहे चंद निवाले के लिए, हालात ने इन्हे मजदूर से मुसाफिर बना दिया”
कुछ ऐसे ही हालत कमोवेश पूरे देश के है। जहां प्रवासी मजदूर अब मजदूरी करने की जगह सफर कर रहे हैं। यह मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहे हैं। शुरुआत में यह पैदल ही मीलों दूर अपने गांव जाने लगे थे। कई प्रवासी मजदूर साइकिल, जुगाड़ गाड़ी पर या कोई रिक्शा में अपने-अपने राज्य जाने लगे थे। वहीं अगर देश के दक्षिण से देश के उत्तर तक साइकिल की सफर की कल्पना मात्र से रूह कांप जाएगी। परंतु यह पेट की आग है जिसके लिए प्रवासी मजदूर अपना घर छोड़ प्रदेश गए थे। आज उसी पेट की आग ने इन्हें वापस अपने राज्य में साइकिल पर आने को मजबूर कर दिया है।
लाकडाउन लगने के बाद पूरे देश से लोग अपने अपने घरों के लिए निकल पड़े हैं। अपनी जिंदगी की गठरी लादे, कोई पैदल चल रहा है, कोई ट्रक से तो कोई साइकिल से। वहीं ऐसे में 3 बेबस मजदूर तमिलनाडु से चलते हुए अंबेडकर नगर पहुंचे हैं। अभी इनका सफर खत्म नहीं हुआ है। अभी इन्हें संतकबीरनगर जाना है। हालांकि उन्होंने अपनी बेबसी की कहानी जब बताई तो सुनकर लोगों की रूह कांप गई।
उन्होंने बताया कि जिस कंपनी में वे चार साल से काम करते थे। उसी कंपनी ने उन्हें उन्ही की हालात पर छोड़ दिया था। पेट की आग से परेशान इन मजदूरों ने अपने घरों से पैसे मंगवा कर साइकिल खरीदी और निकल पड़े साइकिल से करीब 2500 किलोमीटर का सफर तय करने। रास्ते मे जो मिला खा लिया, नही तो पानी पीकर साइकिल चलाते रहे।
27 दिनी तक सायकिल चलाने के बाद ये अपने जिले के बॉर्डर पर पहुंचें। इन मजदूरों का कहना है कि जो भी हो लेकिन उन्हें अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश में पहुंचने के बाद बेहद खुशी महसूस हो रही है। इन मजदूरों को लगने लगा कि अब इन्हें अपने लोग मिल जाएंगे। जिसकी खुशी उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी। इतनी रात में साइकिल पर चलने इन के हालात का जायजा लिया और भूख मिटा खाने का इंतजाम भी किया। यही नहीं देश के कई प्रवासी मजदूर साइकिल से मीलों सफर कर अपने-अपने राज्य पहुंच रहे हैं। हालांकि अब सरकार ने इन प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेन चलवाई हैं।
हालांकि यह ट्रेन भी इन प्रवासी मजदूरों के लिए कम पड़ रही हैं। जिसको लेकर इन प्रवासी मजदूरों के लिए बसें भी चलाई जा रही हैं। वहीं इस समय इन प्रवासी मजदूरों की बसों को लेकर राजनीति चरम पर है। इन मजदूरों को लेकर राजनीति की जा रही है। यह मजदूर पहले ही अपने हालातों से मजबूर हैं और अब इन मजदूरों को लेकर राजनीति होना बेहद दर्दनाक है।