“सामाजिक मीडिया की चुप्पी: पुणे में बच्चों के साथ हुए अपराध पर राजनीतिक खेल”

घटना की जानकारी सामने आई कि बच्चों के साथ स्कूल के शौचालय में यौन उत्पीड़न किया गया था। इस मामले में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए

एक बार एक शहर था, जहाँ समाज में हर छोटी-बड़ी घटना पर ध्यान दिया जाता था। लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय थे, और किसी भी अपराध या अन्याय के खिलाफ त्वरित प्रतिक्रिया देते थे। लेकिन एक दिन, एक नए मामले ने सबका ध्यान खींचा।

शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में दो चार साल की बच्चियों के साथ बेहद दर्दनाक अपराध हुआ। घटना की जानकारी सामने आई कि बच्चों के साथ स्कूल के शौचालय में यौन उत्पीड़न किया गया था। इस मामले में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए – पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में गंभीर देरी, स्कूल की ओर से टालमटोल की रणनीति, और मामले को दबाने के लिए पत्रकार को धमकाना।

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, पत्रकार ने इसे उजागर करने के लिए हिम्मत दिखाई और बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। लोग सड़कों पर उतर आए, ट्रेनें रोकी गईं, और पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन इस बीच, सोशल मीडिया पर बवंडर मचाने वाले लोग अचानक चुप हो गए।

संबंधित सरकारी अधिकारियों और स्कूल के राजनीतिक संबंधों के कारण मामले को दबाने की कोशिश की गई, और पुलिस ने आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाय प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की। आरोपी का नाम था #AkshayShinde। पुलिस की कार्रवाई की दिशा देखकर ऐसा लग रहा था कि उनकी प्राथमिकता प्रदर्शनकारियों को रोकना था, न कि अपराधियों को सजा देना।

अभी तक के सभी आक्रोश, पोस्ट, और ट्रेंड्स अचानक गायब हो गए। कहीं कोई विरोध नहीं, कहीं कोई मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं, और न ही कानून-व्यवस्था की स्थिति पर कोई चर्चा। इस चुप्पी ने लोगों को एक गहरी सोच में डाल दिया।

अब सवाल उठता है – क्या हमारी सामाजिक मीडिया पर प्रतिक्रिया और आक्रोश राजनीति और प्रचार द्वारा संचालित हो रहे हैं? क्या हम केवल तब जागरूक होते हैं जब कोई मामला हमारे राजनीतिक और सामाजिक एजेंडे के अनुकूल हो?

 

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