समागम विरासत साधना के पांचवे दिन बही संगीत की त्रिवेणी
संगीत और नृत्य के अनोखे समागम विरासत साधना के पांचवें दिन की शुरुआत विभिन्न विद्यालयों से आए छात्रों के प्रदर्शन के साथ हुई, जिन्होंने अपनी प्रतिभा को उत्साह के साथ प्रदर्शित किया। इस दौरान कत्थक, ठुमरी, छऊ, और शास्त्रीय बांसुरी का अद्भुत प्रदर्शन कर देश भर के अनेकों महानुभावो ने विरासत साधना के पांचवे दिन को कलामय बनाया।
उत्सव की शुरुआत श्री स्वाति एंड ग्रुप द्वारा छऊ में शिव स्तुति और उसके बाद शिव तांडव द्वारा किया गया। इसके बाद श्री स्वाति समूह, मयुक और अभिषेक समूह द्वारा पंडित बिरजू महाराज की आकर्षक रचना पर प्रदर्शन किया गया। वहीँ प्रदर्शन का समापन शिकर, कल्ली और तराना के साथ किया गया। श्री स्वाति समूह के सदस्य अवाक, शेफाली, शिखा हैं; जबकि मयुक और अभिषेक समूह के सदस्य मयुक, अभिषेक, टीना और अस्मिता हैं। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए हिम ज्योति स्कूल से नीतू भंडारी द्वारा कथक; आयुष्मान कुमार मिश्रा द्वारा तबला और ओजस्वी पेंदुली द्वारा हिंदुस्तानी गायन; और ओलंपस हाई पब्लिक स्कूल की तुशिता कुलश्रेष्ठ द्वारा भरतनाट्यम और श्रेष्ठ नेगी द्वारा द्वारा हिन्दुस्तानी गायन का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम में उत्तर मध्य आंचलिक सांस्कृतिक केंद्र से स्वाति सिसोदिया एंड ग्रुप द्वारा कथक और छऊ संलयन बैले का प्रदर्शन किया गया।
छऊ कला की खासियत
बता दें कि छऊ एक प्रमुख शास्त्रीय भारतीय नृत्य है जिसकी उत्पत्ति पूर्वी भारतीय राज्यों झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में हुई है। यह तीन शैलियों में पाया जाता है जिसका नाम उस स्थान के नाम पर रखा गया है, जहाँ इनकी उत्पत्ति हुई थी। उदाहरणत, बंगाल का पुरुलिया छऊ, बिहार का सेरीकेला छऊ, अब झारखंड, और ओडिशा का मयूरभंज छऊ। यह नृत्य पारंपरिक रूप से सभी पुरुषों की मंडली है, जिसे क्षेत्रीय तौर पर हर साल वसंत के दौरान मनाया जाता है। यह शास्त्रीय हिंदू नृत्यों और प्राचीन क्षेत्रीय जनजातियों की परंपराओं का एक संलयन है। नृत्य एक उत्सव की भावना में विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ लाता है।
कुमुद दीवान और प्रवीण गोडखिंडी द्वारा प्रदर्शन
कार्यक्रम के अगले पड़ाव में कुमुद दीवान द्वारा ठुमरी गायन का प्रदर्शन किया गया। डॉ. कुमुद दीवान हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली की प्रसिद्ध प्रतिपादक हैं। वह पद्मभूषण से सम्मानित बनारस के पं. छन्नूलाल मिश्र की शिष्या हैं और बनारस, गया और लखनऊ ठुमरी की शैली में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हैं। कुमुद दीवान को संगीत में उनके योगदान के लिए इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार, द वीमेन एक्सेलेंस अवार्ड और ओजस्विनी सम्मान जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं। उनके बाद प्रवीण गोदखिंडी द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय बांसुरी का प्रदर्शन किया गया। प्रवीण गोदखिंडी को देश के प्रसिद्द गायक और बांसुरी वादक और अपने पिता पं. वेंकटेश गोडखिंडी के गुरुत्व का प्राप्त है। गौरतलब है कि प्रवीण ने यूएसए, कनाडा, स्पेन, बेल्जियम, जर्मनी, मस्कट, कतर, हॉलैंड, बैंकॉक, सिंगापुर, दुबई, अर्जेंटीना और पुर्तगाल का दौरा किया है और सर्वश्रेष्ठ समकालीन वाद्य एल्बम 2016 का ZMR अवार्ड जीता है।