जिस गोल्ड मेडल को जीतने ओलिंपिक में दुनियाभर के एथलीट जुटे हैं, उसमें गोल्ड है भी या नहीं?
टोक्यो ओलिंपिक भारत के लिए बहुत खास रहने वाला है। पहले ही दिन मीराबाई चानू ने वेट लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीतकर भारत के ओलिंपिक अभियान को बेहतरीन शुरुआत दी है। और भी मेडल्स आने की उम्मीद की जा रही है। सबसे गोल्ड मेडल जीतने की उम्मीद है। पर उससे महत्वपूर्ण है ओलिंपिक पोडियम पर पहुंचना और तिरंगे को लहराते हुए देखना।
चानू समेत कोई भी एथलीट जब ओलिंपिक मेडल गले में डालेगा तो कोई यह नहीं पूछेगा कि उसकी कीमत क्या है? वह तो अनमोल है। वह उनके त्याग, समर्पण और कड़ी मेहनत का फल है, जिसकी कीमत नहीं लग सकती। पर सवाल तो उठता है कि ओलिंपिक के गोल्ड मेडल में आखिर गोल्ड कितना होता है। हर चार साल में होने वाले खेलों के महाकुंभ में अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देने पहुंचे एथलीट्स उस मेडल की कीमत के बारे में सोचकर प्रयास नहीं करते, बल्कि अपनी श्रेष्ठता साबित करने संघर्ष करते हैं। पर क्या आपको पता है कि ओलिंपिक के गोल्ड या अन्य मेडल कैसे बनते हैं?
क्या ओलिंपिक का गोल्ड मेडल सोने से बना है?
नहीं। पर इसके बाद भी दुनियाभर में ओलिंपिक गोल्ड सबसे बड़ी खेल उपलब्धि है। इसके सामने किसी खेल की विश्व चैम्पियनशिप का खिताब भी कम ही लगता है। पर यह गोल्ड मेडल प्योर गोल्ड से नहीं बनता। यह मेडल सिल्वर का होता है, जिस पर सोने की सिर्फ पॉलिश होती है। 1912 के स्टॉकहोम गेम्स में ही आखिरी बार प्योर गोल्ड के मेडल्स दिए गए थे। उसके बाद इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (IOC) के तय नियमों के आधार पर मेडल्स बन रहे हैं।
तो फिर ओलिंपिक के मेडल्स कैसे बनते हैं?
इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (IOC) के नियम कहते हैं कि गोल्ड मेडल में कम से कम 6 ग्राम सोना होना चाहिए। बाकी हिस्सा तो चांदी का ही होता है। IOC की गाइडलाइन कहती है कि ओलिंपिक मेडल्स का व्यास (डायमीटर) 60 मिमी और मोटाई 3 मिमी होना आवश्यक है।इसके साथ-साथ IOC की गाइडलाइन के मुताबिक मेडल के एक तरफ जीत के ग्रीक देवता नाइकी की तस्वीर होना चाहिए। साथ ही पनाथिनाइकोस स्टेडियम जहां 1896 में पहले ओलिंपिक खेलों की शुरुआत हुई थी, वह भी होना चाहिए। साथ ही एक तरफ गेम्स का ऑफिशियल लोगो (5 रिंग) और नाम होना चाहिए, यानी XXXII ओलिंपियाड टोक्यो 2020 लिखा है।
टोक्यो ओलिंपिक गेम्स के मेडल्स क्यों खास हैं?
जापान को टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के लिए जाना जाता है और उसने अपनी काबिलियत को मेडल्स पर भी दिखाया है। पुराने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को रीसाइकल कर उसमें से पदार्थ निकाले गए हैं। उसका इस्तेमाल मेडल्स में किया गया है। यह जापान के इको-फ्रेंडली होने के प्रति कमिटमेंट को दिखाता है। आम लोगों ने ओलिंपिक मेडल्स बनाने के लिए अपने गैजेट्स दान दिए हैं। इससे उन्हें गेम्स से जोड़ा गया है।
टोक्यो ओलिंपिक के मेडल्स कैसे डिजाइन किए गए हैं?
आयोजकों ने ज्यादा से ज्यादा जापानियों को जोड़ने के लिए डिजाइन कॉम्पिटिशन आयोजित की थी। 400 एंट्री आई थीं। टोक्यो 2020 के आयोजकों के मुताबिक यह मेडल रफ स्टोन के तौर पर दिखता जरूर है, पर उन्हें पॉलिश किया गया है और वे चमकते हैं। यह ‘लाइट’ और ‘ब्रिलियंस’ ही जापान गेम्स की ओवरऑल थीम है। ये मेडल्स लाइट को बेहतरीन तरीके से रिफ्लेक्ट करते हैं, जो एथलीट्स की एनर्जी को प्रदर्शित करता है।
टोक्यो ओलिंपिक मेडल्स की रिबन क्या कहती है?
जापान की पारंपरिक संस्कृति को मेडल्स के साथ इस्तेमाल किए रिबन पर हाईलाइट किया गया है। यह ट्रेडिशनल डिजाइन है। रिबन को जापान के रिफ्लेक्शन के तौर पर डिजाइन किया है और यह विविधता में एकता को दिखाता है। यह डिजाइन टोक्यो 2020 के ब्रांड विजन इनोवेशन फ्रॉम हारमनी भी बताता है।रिबन की सतह पर सिलिकॉन कॉन्वेक्स लाइन का उपयोग किया गया है ताकि कोई भी सिर्फ छूकर बता सकता है कि मेडल गोल्ड है या सिल्वर या ब्रॉन्ज। केमिकल प्रक्रिया का इस्तेमाल कर पॉलीस्टर फाइबर को रीसाइकल किया है और उसका इस्तेमाल इसमें किया है।