इस असली पत्रकार को पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे, यूपी में अबकी क्या होने वाला है!
इलाहाबाद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा लेने के बाद एमआईटी से पीएचडी करके वहीं अमरीका में अकादमिक क्षेत्र में बुलंद मुकाम बनाने वाले एक प्रोफेसर और मुंबई के कुछ बहुत ही विद्वान एवं सामाजिक रूप से जागरूक पत्रकारों के साथ चुनाव यात्रा एक बेहतरीन अनुभव है | आम तौर पर चुनाव यात्राओं के दौरान कौन जीत रहा है या कौन कौन हार रहा है, यह बातें उठती रहती हैं, या कितनी सीटें किस पार्टी को मिलने वाली हैं | यह बातें मुझे बोर करती हैं | हालांकि अपने ग्रुप में भी यह चर्चा आती रहती है, लेकिन हमारे साथियों की यात्रा का स्थाई भाव उत्तर प्रदेश की राजनीतिक विकास यात्रा को समझना है | देश के चोटी के पत्रकार कुमार केतकर और ब्राउन विश्वविद्यालय के विश्वविख्यात प्रोफेसर आशुतोष वार्ष्णेय के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश की चुनाव यात्रा मुझे अब तक अभिभूत कर चुकी है | मैं अपने को धन्य मानना शुरू कर चुका हूँ | लोकसभा के चुनाव में जो जीतेगा वह सांसद बनेगा लेकिन लखनऊ से बनारस तक की हमारी यात्रा में हमारे साथी , कुमार केतकर सांसद हैं लेकिन पत्रकारिता के धर्म में अडचन न आने पाए इसलिए वे अपने इस परिचय को पृष्ठभूमि में रख कर चल रहे हैं | हमें मालूम है कि अगर रायबरेली में हमने बता दिया होता कि केतकर जी सांसद हैं तो हमको बहुत ही सम्मान से ट्रैफिक की चकरघिन्नी खाने से मुक्ति मिल जाती लेकिन हम रायबरेली में गोल गोल घुमते रहे और एक पत्रकार के लिए वह नायाब तजुर्बा हासिल करने में कामयाब रहे कि इतने दशकों से वीआईपी चुनाव क्षेत्र होने के बाद भी रायबरेली शहर विकास की यात्रा में पिछड़ गया है | कुमार केतकर हमारे साथ सडक पर छप्पर में बनी चाय की दुकानों पर बैठकर जिस तरह से श्रोता भाव से सब कुछ सुनते रहते हैं ,वह बहुत ही दिलचस्प है | जब अमेठी के रामनगर में संजय सिंह के महल के सामने झोपडी में चल रही चाय की दुकान में हम बैठे थे तो मुझे लगा कि अगर किसी अधिकारी को पता लग जाये कि टुटही कुर्सी बैठे यह श्रीमानजी संसदसदस्य हैं तो वह प्रोटोकाल का पालन करने की कोशिश करेगा लेकिन कुमार को वह मंज़ूर नहीं क्योंकि उनको अपने अन्दर बैठे पत्रकार को पूरे शान और गुमान के साथ जिंदा रखना है | मुझे लगता है कि अगर अपने मूल धर्म के पालन में सभी लोग यही संकल्प रखें तो समाज का बहुत भला होगा |
हमारी पूरी यात्रा में दलितों को केवल वोटर के रूप में पहचानने की कवायद से बार बार सामना हुआ | मुझे इसमें दिक्क़त होती है | मैं जानता हूँ कि दलित युवकों का शिक्षित वर्ग सामाजिक न्याय के सवालों को बहुत ही तरीके से समझता है और उसके राजनीतिक भावार्थ को जानता है | मेरी उत्तर प्रदेश यात्राएं होती तो बहुत हैं लेकिन कभी एक दिन के लिए तो कभी चार दिन के लिए | 1994 के बाद से बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में नियमित रूप से एक महीना गाँव में रहना अब इतिहास है लेकिन मुझे पता चलता रहता था कि मेरे गाँव में सही अर्थों में दलित विषयों की चेतना है | ‘हरिजन‘ शब्द के प्रयोग की राजनीति को मैंने 1973 में ही अपने गाँव के दलित लोगों के वरिष्ठ दलित लोगों को बताने की कोशिश की थी | अमरीका के ब्लैक पैंथर्स के बारे में दिनमान ने कुछ छापा था और उसके आधार पर और सूचना इकट्ठा करके मैंने गाँव के समझदार दलित, खेलई से बात की थी | उसके पहले इन लोगों ने बराबरी के छोटे ही सही लेकिन महत्वपूर्ण प्रयोग किये थे | एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना के ज़रिये बात को रेखांकित करने की कोशिश की जायेगी | हमारे गाँव में सभी जातियों के बाल नाई काटते थे | बाल काटने के पहले नाई लोग पानी से बाल को खूब भिगोते थे | इस तरह से सिर में मालिश हो जाती थी | लेकिन दलित व्यक्ति जब बाल कटवाने जाते थे तो नाई का आदेश होता था कि बाल भिगोकर आओ , वह अपने ही हाथ से पानी से बाल भिगोते थे ,उसके बाद उनके बाल काटे जाते थे | खेलई दादा ने मुझे एक दिन बताया कि अब हम लोग अपने बाल खुद नहीं भिगोएंगे | जैसे बाभन ठाकुरों के बाल नाई जी भिगोते हैं ,वैसे ही हमारे भी बाल उनको भिगोना पडेगा | लेकिन नाई लोग सहमत नहीं हुए | बड़ी लम्बी कहानी है लेकिन इस समस्या की काट निकाल ली गयी | दलित बस्ती के कुछ लड़कों ने उस्तरा कैंची खरीद लिया और खुद ही बाल काटने की कोशिश की | धीरे धीरे वे कुशल नाई हो गए | उस दलित लड़कों को उनकी अपनी बिरादरी के लोग नाऊ ठाकुर ही कहने लगे | यह बहुत बड़ी बात थी | जन्म से नहीं कर्म से जाति के सिद्धांत का एक उदाहरण था | उसके बाद बहुत सारे विकास हुए | शिक्षा का महत्व, सरकारी नौकरी का महत्व ,मेरे गाँव के दलितों की राजनीतिक समझदारी में बड़ा कारक बना | बाद में जब दलित मुद्दा आन्दोलन का रूप लेने लगा तो कांशी राम के एक साथी मेरे गाँव में आये | यह 1984 के चुनाव के बाद की बात है | बहुजन समाज पार्टी का गठन नहीं हुआ था ,डीएस 4 नाम के संगठन के ज़रिये दलित चेतना के विकास की बात हो रही थी | उन्होंने ही लोगों को अपना कोई उद्यम लगाने की बात सबसे पहले समझाई थी | जब गाँव के चौराहे पर दलित लड़कों ने छोटी छोटी दुकानें खोलना शुरू किया तो मुझे स्पष्ट हो गया कि अब यह कारवाँ चल पड़ा है, यह रुकने वाला नहीं है | अब तो मेरे गाँव के दलितों के लड़के लडकियां उच्च शिक्षा ले रहे हैं | पिछली यात्रा में पता चला कि जिस सरकारी विभाग में मेरे काका का पौत्र सहायक इंजीनियर हुआ है ,उसी के साथ एक दलित नौजवान की नियुक्ति भी उसी विभाग में हुई है | दोनों राजपत्रित अधिकारी हैं | इस घटना का महत्व यह है कि उस दलित के पिता और बाबा मेरे काका के यहाँ हरवाही करते थे | लेकिन शिक्षा और संविधान प्रदत्त अधिकारों की जानकारी वास्तव में समतामूलक समाज की स्थापना की ज़रूरी शर्त है | इसी शिक्षा ने गरीबी पर मर्मान्तक प्रहार भी किया है |
बहरहाल मेरे सहयात्रियों को मेरे भाई, सूर्य नारायण सिंह ने दलित नेताओं से मिलवाया | डॉ लोकनाथ मेरे भाई के बहुत ही क़रीबी हैं और मेरे परिवार के सभी लोग उनको अपना डाक्टर मानते हैं | चौराहे पर उनकी क्लिनिक है | इन लोगों को मेरे भाई ने डाक्टर साहब से मिलवाया और उनके साथ यह दलित बस्ती में गए | वंचना ( Deprivation) के असली मुद्दों पर बात हुयी | शासक वर्गों की कोशिश रहती है कि दलितों को ब्राह्मण विरोधी साबित किया जाए और सारी बहस को जाति बनाम जाति के विमर्श में लपेट दिया जाए | लेकिन वहां से लौटकर आने के बाद इन लोगों ने मुझे बताया कि सामाजिक मुद्दों के प्रति जो जागरूकता वहां देखने को मिली , वह अद्वितीय है | दलित बस्ती के बाशिंदों ने साफ़ बता दिया की हमारी लड़ाई किसी ब्राहमण से नहीं है , लड़ाई वास्तव में उस सोच से है जो एक ख़ास वर्ग के आधिपत्य की बात करती है | सवर्ण सुप्रीमेसी की उस राजनीति को ब्राह्मणवाद भी कहा जा सकता है | करीब घंटा भर चले इस वाद विवाद में सब खुलकर बोले और सारे सवालों पर आम्बेडकर के हवाले से अपना दृष्टिकोण रखा | दलितों के इंसानी हुकूक का सबसे बड़ा दस्तावेज़ , भारत का संविधान है | उसके साथ हो रही छेड़छाड़ की कोशिशों से हमारे गाँव के दलित चौकन्ना हैं | उनको जाति के शिकंजे में लपेटना नामुमकिन है | वे मायावती की राजनीति का समर्थन करते हैं तो उम्मीदवार किसी भी जाति का हो, उसकी जाति की परवाह किये बिना उसको वोट देने में उनको कोई संकोच नहीं है | प्रो. आशुतोष वार्ष्णेय ने मुझसे साफ़ कहा कि इस चेतना के बाद सामाजिक परिवर्तन के रथ को रोक सकना असंभव है | अब यह कारवाँ रुकने वाला नहीं है, क्योंकि जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से नहीं टाले जा सकते और यह भी अब डेरे मंजिल पर ही डाले जांयेंगे और जब बराबरी वाला समाज स्थापित हो जाएगा तो भारतीय समाज की विकास यात्रा को कोई नहीं रोक सकेगा | क्योंकि इन दलित नौजवानों ने तय कर रखा है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी अगर उनके भविष्य को डॉ अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन से हटकर लाने की कोशिश करेगी तो वह उनको मंज़ूर नहीं है क्योंकि डॉ आंबेडकर की राजनीति में ही सामाजिक बदलाव का बीजक सुरक्षित है |
मेरे गाँव से बनारस की सड़क पर करीब 25 किलोमीटर चलने के बाद सिंगरामऊ पड़ता है | वहीं पर एक नायाब इंसान रहता है | सिंगरामऊ रियासत के मौजूदा वारिस कुंवर जय सिंह से मुलाक़ात हुई | ग्रामीण उत्तर प्रदेश में शिक्षा के विकास के लिए उनके पूर्वजों ने करीब एक सौ साल पहले एक पौधा लगाय था जो अब बड़ा हो गया है | राजा हरपाल सिंह पोस्ट ग्रेजुएट कालेज , केवल जौनपुर का ही नहीं ,पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शिक्षा संस्थान है | कुंवर जय सिंह ,जिनको इस इलाके में सभी जय बाबा के नाम से जानते हैं ,अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित इसी शिक्षा संस्थान का कार्यभार देखते हैं | उनके कोट में मट्ठा पीने को मिला, बेहतरीन पेय लेकर हम उनके साथ ही, वहां चल पड़े जहां जाने के लिए दिल्ली ,मुंबई के बहुत सारे साथी अक्सर प्लान बनाते रहते हैं लेकिन बहुत कम लोग अभी तह जा पाए हैं | मेरी मुराद बीएचयू के छात्र संघ के चालीस साल पहले अध्यक्ष रहे, श्री चंचल से है | उन्होंने अपने पुरखों के गाँव ,पूरे लाल , में समता घर बना रखा है जहां गरीबी और deprivation के शिकार लोगों के बच्चों को शिक्षा और हुनर की ट्रेनिंग देकर गरीबी के मुस्तकबिल को लगातार चुनौती दी जाती है | महानगर से जाकर जो लोग भी समता घर में रहे हैं, उनके लिए ग्रामीण जीवन के अनुभव के बेहतरीन अवसर इस ठीहे पर उपलब्ध रहते हैं,और लोगों के लिए वहां जाकर चंचल जैसे नामी कलाकार ,पत्रकार, राजनेता, लेखक से मिलना सही होता होगा लेकिन चंचल के गाँव में मेरे लिए उनकी माई से मिलना एक जियारत होती है | माई से जब मैं मिलता हूँ तो मुझे अपनी माई की याद आ जाती है | जब पूरे लाल की प्रथम नागरिक और चंचल की माई मुझे कलेजे से लगाकर आशीर्वाद देती हैं तो लगता है कि मेरा भविष्य बहुत ही उज्जवल है | आने वाली मुसीबतों को अपनी निश्छल अपनैती से चुनौती देने वाली यह मां, मुझे किसी भी मुसीबत का मुकाबला करने का हौसला देती है | शायद इसीलिये “ कहते हैं कि मां के पाँव के नीचे बहिश्त है “पूरे लाल में राजनीतिक चर्चा भी हुयी , हालाते हाजेरह पर तबसरा हुआ | हमारे मुंबई से आये दोस्तों को बहुत मज़ा आया | उन्होंने मुंबई में रहने वाले जौनपुर मूल के भइया बिरादरी के लोगों की ज़मीन की मिट्टी की समृद्धि को करीब से देखा और अनुभव किया | उनको लगता होगा कि इतने संपन्न इलाके से खेती के मालिक ठाकुरों ब्राह्मणों के बच्चे मुंबई जाकर मजदूरी क्यों करते हैं | लेकिन इसका जवाब है और कभी मैं ही उसको लिखूंगा |
हमारा अगला पड़ाव जौनपुर था | जहां मेरे बीए के दर्शन शास्त्र के शिक्षक डॉ अरुण कुमार सिंह के साथ सत्संग की योजना थी | लेकिन उनसे वैसी बात नहीं हो सकी जैसी उम्मीद थी क्योंकि उनको बोलने का मौक़ा ही नहीं मिला | उनके घर पर एक युवक से मुलाक़ात हुयी | इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त यह नौजवान आजकल बीजेपी का जिम्मेवार कार्यकर्ता है | पिछड़ी जाति के परिवार में जन्म लेकर उच्च शिक्षा हासिल करना अपने आप में एक उपलब्धि है | यह युवक कुशाग्र्बुद्द्धि है लेकिन पता नहीं क्यों हो गया था कि राजनीतिक विमर्श में अपनी पार्टी की घोषित लाइन को कुछ इस तरह से चलाने की कोशिश कर रहा था जैसे चुनाव प्रचार में किया जाता है | ज़ाहिर है मुलाक़ात बेमजा रही | हम में से कोई भी उस इलाके में मतदाता नहीं है और जो लोग भी हमारे काफिले में शामिल थे लगभग सभी लोकसभा 2019 में वोट डाल चुके हैं | वहां से बेनी साहु की दिव्य जौनपुरी इमरती का प्रसाद खाकर हम अगली मंजिल के लिए रवाना हो गए | इस यात्रा में हमारे सबसे वरिष्ठ साथी कुमार केतकर संसद के सदस्य हैं लेकिन अपनी उस पहचान को पूरी तरह से आच्छादित करके चल रहे हैं | वे एक शुद्ध पत्रकार के रूप में यात्रा कर रहे हैं | मैं कई बार सोचता हूं कि जिस संसद की सदस्यता लेने के लिए आज देश के अलग अलग कोने में अरबों खरबों रूपये बहाए जा रहे हैं , उसी संसद के ऊपरी सदन के सदस्य कुमार केतकर इस यात्रा में इस तरह से रह रहे हैं जैसे एक साधारण पत्रकार अपनी यात्रा करता है | सुल्तानपुर में जब वरुण गांधी की चुनावी सभा में यह ख़तरा बहुत ही अयां हो गया कि उनको वरुण गांधी पहचान लेंगे तो विकास नायक ने उनको तुरंत भीड़ के सबसे पीछे ले जाकर श्रोताओं के बीच छुपा दिया | मैंने बहुत से पत्रकार देखे हैं , जौनपुर के बाद वाराणसी में बहुत सारे सेलिब्रिटी पत्रकारों से फिर सामना हुआ लेकिन बनारस की गलियों में पैदल चलते , सांड से बचकर रास्ता तलाशते ,फर्श पर बैठकर बनारस के संतों की वाणी सुनते कुमार केतकर को देखना मेरे लिए वह वह उम्मीद की किरण है कि अगर हाथ में कलम है तो ज़िंदगी को हमेशा एक मक़सद दिया जा सकता है | इस चुनाव की उनकी कवरेज देखकार मुझे लगता है कि मैं भी जब बड़ा बनूंगा तो कुमार केतकर जैसा पत्रकार बनूंगा | वाराणसी के होटल में बहुत सारे फाइव स्टार पत्रकारों के दर्शन हुए लेकिन उनमें से किसी को मैं काबिले एहतराम नहीं मानता | वाराणसी में जिस तरह से कुमार केतकर ने ई रिक्शा की यात्रा की,पैदल घूमे और शहर के मिजाज़ को समझने की कोशिश की ,वह मेरे लिए ,मेरी ज़िंदगी का अहम सबक है | चुनावी माहौल में एक साधारण रिपोर्टर की तरह काम करना बहुत ही कठिन तपस्या है, और यह तपस्वी साधारण से साधारण होटलों में रुक कर जिस तरह से अपनी मिशन पत्रकारिता को अंजाम दे रहा है ,वह मेरे श्रद्धा का सबसे बुलंद मुकाम है |